करवा चौथ
एक दिन लक्ष्मी जी से आकर, बोले उल्लूराज।
सारी दुनियाँ पूजे तुमको, मुझे पुजा दो आज॥
मै वाहन तेरा हूँ माता, कभी न पूजा जाता।
कोई नही फ़टकने देता जिस घर में मै जाता॥
ऎसा करो उपाय कि माता मै भी पूजा जाऊँ।
ज्यादा नही एक दिन तो माँ,मै भी देव कहाऊँ॥
उल्लू जी की बातें सुनकर, लक्ष्मी जी यों बोली।
मेरे प्यारे उल्लू राजा, बहुत हुई ठिठौली...
नाम तुम्हारा सारे जग में मुझसे भी ज्यादा आता।
कभी-२ अच्छे से अच्छा उल्लू का पट्ठा कहलाता॥
बात करो मत पूजन की,एक दिन तेरा भी है आता।
दीवाली के ग्यारह दिन पहले ही उल्लू पूजा जाता॥
करवा चौथ का दिन होता है एसा महान प्यारे।
इस दिन पूजे जाते हैं दुनियाँ भर के उल्लू सारे॥
सुनीता(शानू)...:)
पूरी उल्लू बिरादरी का लक्ष्मी जी को प्रणाम.
ReplyDeleteकृपा बनाए रखें...क़ायदे से तो पतियों को भी एक दिन के लिये अपनी सहचरी के लिये दिन भर भूखा रहना चाहिये..क्यॊंकि पूरे साल भर जो दोनो समय गरम गरम फ़ुलके बना कर पूरे नेह और समर्पण से आहार देती हो उसका भी मान रखा जाना चाहिये एक दिन...
अच्छा लपेटा है शानू जी पतियों को, बहुत खूब, हास्य se भरपूर रचना के लिए बधाई.
ReplyDeleteदेखिये रामधारी सिंह दिनकर जी कुरुक्षेत्र में क्या कहते है -
यह् परीक्षित भूमि, यह् पोथी पठित, प्राचीन
सोंचने को दे उसे अब बात कौन नवीन ?
यह् लघुग्रह भूमिमंडल, ब्योम यह् संकीर्ण,
चाहिए नर को नया कछु और जग विस्तीर्ण.
घुट रही नर बुद्धि की है साँस;
चाहती वह कुछ बड़ा जग कुछ बड़ा आकाश.
क्या खूब लिखा है आपने। अच्छा अंदाज़ है व्यंग्य प्रहार का, मज़ा आया पढ़ कर।
ReplyDelete:) :) :) :) खूब कहा ! बहुत सुन्दर रूप मे हास्य व्यंग्य .... ! संजय जी , काश सभी आप जैसे सोचे.
ReplyDeleteबहुत खूब!!
ReplyDeleteअच्छा मौका हाथ लगा है आपके कि हास्य के बहाने बहुतोंँ को लपेटे में लेने के लिया -- शास्त्री
ReplyDeleteहिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
@बहुत खूब...सही खिचाई की है आपने ...आप खीचती रहें और हम खिचते रहे
ReplyDeleteसुनीता जी, यह रहस्य तो आपने खूब बताया... मगर वे उल्लू हुए क्यों?... कौन सा ऐसा मूर्खतापूर्ण कार्य करने से वे उल्लू हो गये... वही कार्य, जो न किया होता तो इस पूजन के अधिकारी न होते... ;)
ReplyDelete(इस प्रतिक्रिया को हास्य मिश्रित ही माना जाय)
देवियों की पूजा तो 24/7 या हरदिन हरसमय होती है, चलिए एक दिन ही सही पति-'देव' तो बने!
ReplyDelete@राजीव जी,
असल में उल्लू का अर्थ है 'उल्टा लटकने वाला'। चिमगादड़ उल्टा लटके रहते हैं, रात्रिचर होता है। आरम्भ में इसी का नाम उल्लू था। शायद अपभ्रंश या भ्रम वश रात्रिचर पक्षी 'घुघ्घू' को उल्लू कहा जाने लगा। उलटी-बुद्धि वाले या बेवकूफों के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा यह शब्द। काली-लक्ष्मी(Black-money) का वाहन है यह। सफेद-लक्ष्मी (White-money) का वाहन तो श्वेत हाथी 'ऐरावत' होता है।
अच्छी भड़ास निकाली है आपने आज के दिल लेकिन कैसे यकीन करें कि रात चांद निकलने पर आप थाली भर शुभकामनाएं लिये दिन भर की भूखी प्यासी किसी अपने की सलामती के लिए दुआएं नहीं मांग रही होंगी. बधाई सरस रचना के लिए
ReplyDeleteहा हा हा । कविता के बहाने उल्लूओं (पतियों) को खूब लपेटा है। पर सारी समझदार पत्नियां (उल्लूओं की) पूजा करती है और उनमें आप भी होंगी। चुटीला व्यंग्य है।
ReplyDeleteकरवा चौथ की शुभकामनाऍं
बहुत खूब सुनीता जी. बात वही है पर अंदाजे बयां निराला है. उल्लूओं के विशेष पर्व पर बधाईयां.
ReplyDeleteहा ...हा.....हा....
ReplyDeleteमज़ा आ गया
@ पर मैं हरिराम जी की बात से बिल्कुल सहमत हूँ कि शुभ लक्ष्मी या तो पद्मासना है या ऐरावत पर बिराजमान है। उल्लू को काली लक्ष्मी का वाहन है।
ReplyDeleteएक और उल्लू की तरफ से बधाई स्वीकार करें
ReplyDeleteबहुत सुंदर और प्रसन्श्नीय है आपकी कविता, नि: संदेह हास्यपूर्ण है,मज़ा आ गया.
ReplyDeleteहा हा!! बहुत सही!! पूज लिया कि नहीं. :)
ReplyDeleteआपको प्रणाम, बड़ी हिम्मत दिखाई जो खुले आम उल्लुओं की सभा में उल्लु को उल्लु कह दिया , सुना तो यही था कि अंधे को अंधा कहो तो उसे गुस्सा आता है यहां तो सब खुश हो रहे हैं , ये आप के लेखन का ही कमाल है।
ReplyDeleteउल्लू ऐसे ही नहीं पुज जाता
ReplyDeleteपूजने वाले से होता है दिल का गहरा नाता।
पसंद आई, कविता तताई।
Sunita Shanoo ji,
ReplyDeleteNameste,
Karwa C ke bahane, aacha majak kiya hum puruso ke sath, bahut maja aaya.
Thanks.