मेरी यह कविता मेरे गुरूदेव के चिट्ठे का काव्यरूपांतरण है...बस यूं ही हँस दिजिये चलते-चलते...
कनाडा में रहने वाले हिन्दुस्तानियों ने,
हिन्दी-दिवस कुछ एसे मनाया...
माँ शारदा की मूरत के आगे,
दीप भारतीय एक जलाया...
भारत से आये एक अधिकारी को,
मुख्य अतिथी बनाया,
हिन्दी हमारी पहचान है कहके
हिन्दी का महत्व समझाया...
गर्मी के मौसम में अतिथी,
गर्म सूट पहन कर आये...
सुनकर भाषण हिन्दी में,
बहुत ही वो घबराये...
आया पसीना देख उन्हे जब,
आयोजक ने पंखा चलवाया...
चली हवा जब पंखें की,
दीपक थौड़ा सा टिमटिमाया...
आखिर अंग्रेजी हवा के आगे,
लौ थौडी़ सी लड़खड़ाई,
बोझिल नजरों से ताकती सी,
बुझ गई जैसे हो पराई...
फ़िर जलाया दीप किन्तु,
जल्द ही बुझा दिया,
माँ शारदा की मूरत को भी,
उठा बक्से में बन्द किया...
हुआ समापन हिन्दी-दिवस,
सबने सयोंजक को थैंक्यू कहा,
एक शब्द न था हिन्दी का,
हिन्दी पखवाड़ा खत्म हुआ...
फ़िर आयेंगे अगले साल,
हिन्दी-दिवस मनाने को...
हम भी है हिन्दी-भाषी,
बस इतना समझाने को...
अंग्रेजी मुल्क में रहकर भी,
दिल से हम हिन्दुस्तानी है,
बदल गये परिवेश हमारे,
सूरत तो जानी पहचानी है...
अंग्रेजो की नौकरी करते,
हिन्दी को घर मे कैसे रखते,
नमक जो खाते है अंग्रेजी,
नमक हरामी कैसे करते...
माना हम तो गैर मुल्क में
रहकर भी हिन्दुस्तानी है...
पर ए हिन्दुस्तां वालो,
तुम्हे हिन्दी से क्या परेशानी है...
हरिराम को तुम हैरी कहते,
द्वारिका दास अब डी डी है...
माँ जीते जी मम्मी बन गई,
पिता बने अब डैडी है...
क्यों अंग्रेजी सर उठा के
फ़टाफ़ट बोले जाते हो,
मातृभाषा के नाम से ,
क्यों इतना कतराते हो...
राजभाषा होकर भी
हिन्दी बनी नौकरानी है,
अंग्रेजी पराई होकर भी,
बनी भारत की रानी है...
आओ हिन्दी को अपनाएं
विश्वास ये अटल रहे
हिन्दी है राष्ट्रभाषा हमारी,
हिन्दी सदा अमर रहे...
हिन्दी सदा अमर रहे...
हिन्दी-दिवस पर आप सभी को हर्दिक शुभकामनाएं
सुनीता(शानू)
सहज और रोचक कविता के बीच सटीक व्यंग्य अच्छा लगा!
ReplyDeleteहा हा!! बढ़िया काव्यरुपांतरण किया है और अंत एक खूबसूरत संदेश के साथ. बधाई.
ReplyDeleteहिन्दी-दिवस पर आप को भी हर्दिक शुभकामनाएं.
:)
अति सुन्दर...बहुत खूब..बहुत ही सधे हुए व्यंग्य बाण ...शब्दों का बहुत ही सार्थक इस्तेमाल ..
ReplyDeleteआज यही मानसिकता है हर किसी की.सिर्फ नाम भर को ही चाहते हैँ उत्थान हिन्दी का...लेकिन अगर आप स्मरण करें तो पाएंगी कि हमारे हिन्दी के अफसर् शाही कण्धारों ने जिस हिन्दी की रचना की है वो आम आदमी की भाषा नहीं है
मेरे ख्याल से जब तक हम अपनी बोलचाल की भाषा को पृयोग में नहीं लाएंगे ,हिन्दी का उत्थान मुश्किल है...कठिन है
असल में कहीं ना कहीं एक हीन भावना सी भरी हुई है कि हिन्दी छोटे लोग बोला करते हैँ...इस सोच से छुटकारा पाना निहायत ही ज़रूरी है ...
खैर उम्मीद पे दुनिया कायम है ...
"हिन्दी हैँ हम...वतन है हिन्दोस्तान हमारा"
अति सुन्दर....बहुत ही सधे हुए व्यंग्य बाणो के पृयोग ने आपकी रचना को चार चाँद लगा दिए...
ReplyDeleteअसल में अपनी सरकार भी दिल से नहीं चाहती है कि हिन्दी का पृचार-पृसार हो ...
हमारे हिन्दी के अफसर शाह कणधारों ने ऐसी हिन्दी की रचना की है कि आम आदमी सोचता है कि "छोड यार!...इंगलिश ही ठीक है...समझ तो आती है कम से कम "
अब कोई करे भी तो क्या करे?
हिन्दी के उत्थान के लिये ज़रूरी है कि इसे आम आदमी की भाषा बनाया जाए ...फिर वो दिन दूर न होगा जब हम गर्व से कह उठेंगे कि...
"हाँ...हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है...
"हिन्दी हैँ हम...वतन है हिन्दोस्तान हमारा"
"जय हिन्द"
बहुत सुन्दर ! सच है हिन्दी भी घर वालों की तरह पराई हो गई है,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ! सच है हिन्दी को भी अपनों ने ही पराया मान लिया है
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता पढ्वाई आपने
ReplyDeleteधन्यवान सुनीता जी
अतुल
बहुत बढ़िया!!
ReplyDeleteसही कह रहीं हैं आप ...बहुत सुंदर ...बधाई
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी कविता है, यह विद्रूपों पर कडा प्रहार है ।
ReplyDeleteधन्यवाद, एक अच्छी कविता के लिए,
मैं भी कुछ दिनों से अपने गुरू डा.नामवर सिंह के भिलाई आगमन और स्वागत में व्यस्त था, अब कुछ फ्री हूं, उन्होंने मुझे बिजी, फ्री, थैक्स को हिन्दी में समाहित कर लेने को कहा कहा है इसलिए अब मैं वक्त पडने पर इसे यूज कर लेता हूं, क्योंकि हिन्दी तभी जन जन की भाषा बन पायेगी जब यह बाजार की भाषा होगी ।
धन्यवाद ।
हिन्दी अब सौतेली भाषा हो गयी, पर यह भी सही है की सब्से ज्यादा कमाई हिन्दी से ही होती है फिल्म और विग्यापन के छेत्र मे. लोग हिन्दी की खाते है अन्ग्रेजी की बजाते है. पता नही इस बात का यहा कहने का औचित्य है की नही. कहना था, कह दिया
ReplyDeleteबहुत खूब्…………
ReplyDeleteहिन्दी का गुणगान करने से
ReplyDeleteहिन्दी की आरती उतारने से
हिन्दी की महानता मात्र बघारने से
हिन्दी का सुधार व विकास नहीं होगा।
यह एक कटुसत्य है कि
यह सभी को एक चुनौती है कि
यह संसार का आठवाँ आश्चर्य है कि
हम हिन्दी भाषियों में कोई भी
सही रीति अपना नाम तक
हिन्दी में नहीं लिख पाते हैं।
हिन्दी की तकनीकी समस्याओं को
सुधारने से ही इसका विकास होगा।
बहुत सुंदर लिखा है सुनीता जी ... एक अच्छा व्यंग आज कल की की हिन्दी की हालत पर शुभकामनाएं.
ReplyDeleteसन्देश के साथ एक बहुत बढिया बात. बधाई और शुभकामनाये
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