तेरा मेरा रिश्ता,
लगता है जैसे...
है दर्द का रिश्ता,
हर खुशी में शामिल होते है,
दोस्त सभी
परन्तु
तू नहीं होता,
एक कोने में बैठा,
निर्विकार
सौम्य
मुझे अपलक निहारता
और
बॉट जोहता
कि
मै पुकारूँ नाम तेरा...
मगर
मै भूल जाती हूँ,
उस एक पल की खुशी में,
तेरे सभी उपकार,
जो तूने मुझ-पर किये थे,
और तू भी चुप बैठा
सब देखता है,
आखिर कब तक
रखेगा अपने प्रिय से दूरी,
"अवहेलना"
किसे बर्दाश्त होती है,
फ़िर एक दिन,
अचानक
आकर्षित करता है,
अहसास दिलाता है,
मुझे
अपनी मौजू़दगी का,
एक हल्की सी
ठोकर खाकर
मै
पुकारती हूँ जब नाम तेरा,
हे भगवान!
और तू मुस्कुराता है,
है ना तेरा मेरा रिश्ता...
लगता है जैसे,
दर्द का रिश्ता...
मै पुकारूँ नाम तेरा...
मगर
मै भूल जाती हूँ,
उस एक पल की खुशी में,
तेरे सभी उपकार,
जो तूने मुझ-पर किये थे,
और तू भी चुप बैठा
सब देखता है,
आखिर कब तक
रखेगा अपने प्रिय से दूरी,
"अवहेलना"
किसे बर्दाश्त होती है,
फ़िर एक दिन,
अचानक
आकर्षित करता है,
अहसास दिलाता है,
मुझे
अपनी मौजू़दगी का,
एक हल्की सी
ठोकर खाकर
मै
पुकारती हूँ जब नाम तेरा,
हे भगवान!
और तू मुस्कुराता है,
है ना तेरा मेरा रिश्ता...
लगता है जैसे,
दर्द का रिश्ता...
सुनीता(शानू)
"अवहेलना
ReplyDeleteकिसे बर्दाश्त होती है"
सत्य है....! भगवान् भी इससे अछूते नही। तभी तो.....दर्द का यह रिश्ता अनुपम है। बधाई।
"हर खुशी में शामिल होते है,
ReplyDeleteदोस्त सभी
परन्तु
तू नही होता,
एक कोने में बैठा,
निर्विकार
सौम्य
मुझे अपलक निहारता
और
बाट जोहता कि,
मै पुकारू नाम तेरा..."
बहुत अच्छा लिखा है शानू जी
a nice way to remember HIM
ReplyDeleteभगवान के माध्यम से अपने रिश्ते और अपना ही पुनरावलोकन कराती सी प्रतीत होती एक बढ़िया रचना!!
ReplyDeleteशुक्रिया!
एक विश्वास का रिश्ता जी दिल की गहराई को छूता है ..
ReplyDeleteआपके लफ़्ज़ो में सुंदर रूप से दिखा ,,बधाई।
टूटी कविताओ में जब भावनाओं का रंग बिखरता है तो दिल को छू लेने वाला भाव अभिव्यक्त होता है ! शानू जी आपकी कविता का नायक तो सभी का चितेरा नायक है उसके प्रेम ने मीरा को कवित्री बना दिया था ! आपने भगवान और भक्त के प्रेम के एक अलग रूप व्यवहार का चित्रण किया है जो सबके अंतरमन मे हिलोरे मार रहा है ! साधुवाद
ReplyDeleteसचमुच सुनीता जी, भगवान से मनुष्य का रिश्ता आप ही के शब्दों में दर्द का रिश्ता है. हम लोग सुख में उसे भूल जाते हैं और दुख हमें फिर उसी के पास ले जाता है. भुत सुंदर और भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteहार्दिक अभिनंदन.
हे भगवान!
ReplyDeleteऔर तू मुस्कुराता है
है ना तेरा मेरा रिश्ता
लगता है जैसे
दर्द का रिश्ता...
बहुत गहरा आध्यात्म है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
शानू जी सुन्दर रचना है
ReplyDeleteभगवान भगतों से कभी दूर नहीं होते.. बस कुछ कर्म वश ही हम ठोकर खाते हैं परन्तु पीडा इश्वर को हमसे अधिक होती है
उनसे मुह्ब्बत....मीरा का स्पंदन....सूफ़ीमय यात्रा....उपकार..अवहेलना...मानव चेतना.उनके हेतु समर्पण का इनसे क्या लेना-देना.
ReplyDelete-Dr.RG
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति की है, रिश्ते की. और वो भी दर्द का रिश्ता. अति सुन्दर. इस रचना के लिये आप बधाइ की पात्र है
ReplyDeletehamesha ki tarah aap ki ye rachna bhi man ko chhoo gayee. bahut sundar abhivyakti ki hai riste ki.. badhai.
ReplyDeleteAkash
कविता जिस तरीके से यह प्रूफ़ करती है कि साधक और साध्य के बीच जो रिश्ता है वो दर्द का रिश्ता है, काफ़ी बेहतरीन है।
ReplyDeleteपुकारती हूँ जब नाम तेरा,
ReplyDeleteहे भगवान!
और तू मुस्कुराता है,
है ना तेरा मेरा रिश्ता...
लगता है जैसे,
दर्द का रिश्ता...
बहुत बहुत बधाई ।
पुकारती हूँ जब नाम तेरा,
ReplyDeleteहे भगवान!
और तू मुस्कुराता है,
है ना तेरा मेरा रिश्ता...
लगता है जैसे,
दर्द का रिश्ता...
सच मे ये दर्द का ही रिशता है
waah kyaa sanwaad rachaa hai usse jisse kuch bhi chipa nahi hai
ReplyDeleteसच है, दर्द भी है, एक अन्जाना सा रिश्ता भी है
ReplyDeleteपुकारती हूँ जब नाम तेरा,
ReplyDeleteहे भगवान!
और तू मुस्कुराता है,
है ना तेरा मेरा रिश्ता...
लगता है जैसे,
दर्द का रिश्ता...
---बहुत खुबसूरती से बात कही है, वाह!! अद्भुत!! बधाई.
मान कर जिन पत्थरों को देवता हम पूजते हैं
ReplyDeleteप्राण उनमें सत्य केवल इक पुजारी पा सका है
वो कहते है न की ईश्वर को यह भी जरुरत नहीं होती कोई उसकी अराधना करे या न करे वह तो परम दयालु है महान पिता…।
ReplyDeleteमन तो मन है इसे पखेरू न कहें बस उड़ चलता है बिना दिशा बोध के…
बहुत अनुरागी कविता है…निराकार के प्रति प्रेम की अद्भुतता…।
एक हल्की सी
ReplyDeleteठोकर खाकर
मै
पुकारती हूँ जब नाम तेरा,
हे भगवान!
और तू मुस्कुराता है,
है ना तेरा मेरा रिश्ता...
लगता है जैसे,
दर्द का रिश्ता...
ek behatareen baa hai poore kavia main adhyatm he adhyatm hai
एक हल्की सी
ReplyDeleteठोकर खाकर
मै
पुकारती हूँ जब नाम तेरा,
हे भगवान!
और तू मुस्कुराता है,
है ना तेरा मेरा रिश्ता...
लगता है जैसे,
दर्द का रिश्ता...
BADHAI....
एक हल्की सी
ReplyDeleteठोकर खाकर
मै
पुकारती हूँ जब नाम तेरा,
हे भगवान!
और तू मुस्कुराता है,
है ना तेरा मेरा रिश्ता...
लगता है जैसे,
दर्द का रिश्ता...
AASTHA KA SAJEEV CHIRAN HAI
है ना तेरा मेरा रिश्ता
ReplyDeleteलगता है जैसे
दर्द का रिश्ता...
बहुत गंभीर वार्तालाप कर लिया आपने तो प्रभु से
बहुत अच्छा
सस्नेह
गौरव शुक्ल