हे अमलतास
तपती धरती करे पुकार,
गर्म लू के थपेड़ों से,
मानव मन भी रहा काँप
ऐसे में निर्विकार खड़े तुम
हे अमलतास।
मनमोहक ये पुष्प-गुच्छ तुम्हारे,
दे रहे संदेश जग में,
जब तपता स्वर्ण अंगारों में,
और निखरता रंग में,
सोने सी चमक बिखेर रहे तुम
हे अमलतास।
गंध-हीन पुष्प पाकर भी,
रहते सदा मुसकाते,
एक समूह में देखो कैसे,
गजरे से सज जाते,
रहते सदा खिले-खिले तुम
हे अमलतास
हुए श्रम से बेहाल पथिक,
छाँव तुम्हारी पाएँ,
पंछी भी तनिक सुस्ताने,
शरण तुम्हारी आयें,
स्वयं कष्ट सहकर राहत देते
हे अमलतास।
बचपन से हम संग-संग खेले,
जवाँ हुए है साथ-साथ,
झर-झर झरते पीले पत्तों सा,
छोड़ न देना मेरा हाथ,
हर स्वर्णिम क्षण के साथी तुम
हे अमलतास।
सुनीता(शानू)
यह हम अनुभूति में पढ़ चुके हैं एक बार और मन ही मन वाह वाह भी कर चुके हैं और आज फिर से पढ़ा तो लिख कर किये दे रहे हैं-वाह, बहुत बढ़िया. :)
ReplyDeleteजिए तो अपने बगीचे में गुलमुहर के तले
ReplyDeleteमरे तो ग़ैर की गलियों में गुलमुहर के लिए
दुष्यंत कुमार
अच्छा लिखा.. अमलतास का जादू होता है कुछ खास..
ReplyDeleteDr Manohar Lal Sharma who is no more was a brother to me and was a very good hindi writer and poet from Himachal . He has written a very beautiful line about अमलतास
ReplyDelete"बनन मे छिटक रही छटा अमलतास की "
your poem reminded me of him
अमलतास के माध्यम से आपने शब्दों का जाल बुनते हुए एक अच्छी अभिव्यक्ति की है।
ReplyDeleteबधाई!
पहले पढ़ी जरुर थी यह रचना अनुभूति पर!!
बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर । चित्र भी सुन्दर है ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
सुनीता जी बधाई । सजीव प्राकृतिक तत्वों से मनुष्य का बडा गहरा नाता है । आपने अमलतास को अपनी भावनाओं में बसा कर बडे ही सुन्दर शव्दों में जीवन की सुंदरता के साथ कविता के रूप में प्रस्तुत किया है । स्वयं घूप से तपकर पंथी पंछी को राहत देने का भाव और उस भाव को परख कर शव्दों का रूप देने का कार्य जो आपके कवित्री मन नें किया है उसके लिए धन्यवाद । संपूर्ण कविता सुन्दर अमलतास ।
ReplyDeleteanubhuti me padhaa tha ise.
ReplyDeletesundar rachna.
इसको अनुभूति मैं पढ़ा था मैने ..बहुत सुंदर रचना लगी है आपकी सुनीता जी ...अमलतास का जादू आपकी रचना में घुल गया है
ReplyDeleteअमलतास के माध्यम से आपने जो बात कही है, वास्तव मे उच्च कोटि की है।
ReplyDeleteकहीं प्रकृति प्रेम तो कहीं श्रंगार, तो कहीं परोपकार का संदेश देती यह रचना वास्तव मे तारीफ के काब़िल है ।
अपनी दीदी को बधाई प्रेषित करते हुये मन हर्षित है ।
आर्यमनु ।
आपका अमलतास वास्तव में बहुत सुन्दर है
ReplyDeleteबधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
छोड़ न देना मेरा हाथ,
ReplyDeleteहर स्वर्णिम क्षण के साथी तुम
हे अमलतास।
बहुत सून्दर भावाभिव्यक्ति है ।
खूबसूरत अहसास जगाती हुई कविता.अच्छी लगी.
ReplyDeleteअनुभूति में पढ़ने के बाद आज फिर यहां पढ़ने में वही आनंद मिला। बहत सुंदर रचना है।
ReplyDeleteइतनी गर्मी मे ठंडक पहुँचाती हुई यह कविता , बहुत बढिया !
ReplyDeleteआपकी यह रचना अनुभूति पर पढ़ चुका हूँ :)
ReplyDeleteअमलतास का जादू खूब छाया है आप पर, हर जगह यही दिख रहा है :)
बधाई!!!
एक वृक्ष को हृदय आवृति में बांधकर आपने बहुतों के पक्ष को सरलता से कह दिया…मन में तैरती संवेदना को परिस्थिति-संयम- जुझने की क्षमता,सभी को उम्दा ढंग से उजागर किया है यहां पर…बहुत खुब!!!
ReplyDeleteहुए श्रम से बेहाल पथिक,
ReplyDeleteछाँव तुम्हारी पाएँ,
पंछी भी तनिक सुस्ताने,
शरण तुम्हारी आयें,
स्वयं कष्ट सहकर राहत देते ...
बहुत ही खुबसूरत रचना...
सादर बधाई...
बहुत सुन्दर भाव ... आपका प्रकृति प्रेम भी उजागर हुआ ..
ReplyDeleteझर-झर झरते पीले पत्तों सा,
ReplyDeleteछोड़ न देना मेरा हाथ,
हर स्वर्णिम क्षण के साथी तुम
हे अमलतास।
बेहद खूबसूरत कविता।
सादर
बहुत भावुक कर गयी आपकी रचना ! याद दिला गयी अपने घर के विशाल अमलतास के वृक्ष की जो मेरा विशिष्ट रूप से प्रिय वृक्ष था और जो कीड़ा लग जाने कारण खतरनाक हो गया था और इसीलिये उसे अनिवार्य रूप से कटवाना पड़ गया ! लेकिन उस पर होने वाला हर प्रहार मेरे मन पर गहरा आघात कर रहा था ! आज भी उस वृक्ष की तस्वीरें मेरे पास सुरक्षित हैं ! आभार !
ReplyDeleteबहुत खूब ..प्रकृति से अनुनय विनय ...प्रकृति प्रेम से परिपूर्ण अभिव्यक्ति ..सादर शुभकामनायें !!!
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