*फिर मिलेंगे*
ये मिलना मिलाना
या फिर कहना कि
फिर मिलना
या मिलने के लिये
बस कह देना
कि फिर कब मिलोगे
मिलने का एक दस्तूर है बस
मिलने को जो मिलते हैं
वे कहते कब हैं मिलने की
मिल ही जाते हैं मिलने वाले
जिनको चाह है मिलने की
कहने भर से गर कोई मिलता
मिल ही जाता
न रहती उम्मीद की कोई
अब आयेगा, तब आयेगा
शायद शाम ढले
वो आ पायेगा
या फिर
अटका होगा किसी काम में
या रोक लिया होगा
किसी राह ने
आज नहीं शायद वो
कल आयेगा
आना होता तो आ ही जाता
आने न आने के बीच
न जाने कितने
बहाने बन जाते हैं
आने वाले आते ही हैं
न आने वाले बस कह जाते हैं
हाँ फिर मिलेंगे
जल्दी ही...
# सुनीताशानू
वाह बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (13-08-2018) को "सावन की है तीज" (चर्चा अंक-3062) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Bahut badhia....
ReplyDelete*फिर मिलेंगे* , कुछ भी हो, ये शब्द "वह" तो बंधा ही जाते हैं, जिस पर दुनिया कायम है !
ReplyDeleteग़ालिब का एक शेर है कि
ReplyDeleteकोई उम्मीद भर नहीं आती
कोई सूरत नजर नहीं आती।
न आने वालों के लिए उम्मीद भी मायुष होती है।
शानदार लेखन
मेरे ब्लॉग पर स्वागत रहेगा।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति मन को छू लेने वाली
ReplyDeleteक्या बात है...अति सुंदर
ReplyDeleteIt is really beautiful. Thanks for sharing. I really like it. I shared this post in 24 hour Des Moines Towing site.
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ReplyDeletehello
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