रिश्ते निभाये जा रहे हैं
सीलन, घुटन और उबकाई के साथ
रिश्ते निभाये जा रहे हैं
दूषित बदबूदार राजनीति के साथ
रिश्तों में नही दिखती जरूरत अपनापन
रिश्ते दिखने लगे हैं दंभ के चौले से
मेरी तमाम कोशिशें नाकाम करने की ख़्वाहिश में
रिश्तों ने ओढ़ ली है काली स्याह चादर
डर है कहीं ये साज़िशें अपने नुकीले डैनो से
तोड़ न दे संसार हमारा।
सुनीता शानू
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22.8.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3435 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद