चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Monday, December 30, 2013

कसम



कसम

कसम खाई थी दोनों ने,
एक ने अल्लाह की-
एक ने भगवान की-
दोनों ही डरते थे,
अल्लाह से भगवान से
मगर...
उससे भी अधिक डर था उन्हें
खुद के झूठे हो जाने का,
उस पाक परवर दिगार से-
मुआफ़ी माँग ली जायेगी
कभी भी
अकेले में॥

11 comments:

  1. आखिर, वो मांफ भी कर जो देता है !
    ये तो इंसान ही है जो भूल नहीं पाता !

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  2. उससे भी अधिक डर था उन्हें
    खुद के झूठे हो जाने का
    good and nice line. thanks

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  3. आपकी लिखी रचना बुधवार 01/01/2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  4. सुन्दर.......नव वर्ष मंगलमय हो

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  5. अपने आप से छुपना मुश्किल होता है ...
    नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...

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  6. भावो की
    बेहतरीन........आपको भी नववर्ष की शुभकामनायें

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  7. हार्दिक शुभकामनाएं ..

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  8. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  9. बहुत सुंदर ,और उम्दा अभिव्यक्ति...बधाई...

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य