कभी-कभी ये चंद सांसे जीने का कितना बड़ा सहारा बन जाती हैं, उसे एक संवेदनशील मन ही समझ सकता है। कविया की संवेदना पाठकों तक पहुंचती है। मेरे जैसा पाठक जो गोरख पांडे की डायरी या परवीन शाकिर की चुप्पी को न जानता हो, उसे इस बिम्ब के प्रयोग से थोड़ी कठिनाई तो हो समती है लेकिन अर्थ स्पष्ट है ..।
गज़ब...
ReplyDeletechnd saase udhar wo bhi....bahut khoob
ReplyDeleteदीमक भी पूरा नहीं चाट खाती .... !
ReplyDeleteज़िन्दगी दरख़्त की ..... !!
कडवी लेकिन सच .... !!
अनुपम भाव संयोजन लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteachchi kavita hai
ReplyDeleteकुछ अलग सी पोस्ट सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी
ReplyDeleteयार्थार्थ को दर्शाती अभिवयक्ति..
ReplyDeletetumhaaree saanso kee ghutan aur pareshaanaa samajh nahee aa rahee hai,
ReplyDeletesadaa hansne waalee aaj ro kyoon rahee hai
aansoo paunchho aur uth jaao
udhaar saanso par jeenaa chhod do
कभी-कभी ये चंद सांसे जीने का कितना बड़ा सहारा बन जाती हैं, उसे एक संवेदनशील मन ही समझ सकता है। कविया की संवेदना पाठकों तक पहुंचती है।
ReplyDeleteमेरे जैसा पाठक जो गोरख पांडे की डायरी या परवीन शाकिर की चुप्पी को न जानता हो, उसे इस बिम्ब के प्रयोग से थोड़ी कठिनाई तो हो समती है लेकिन अर्थ स्पष्ट है ..।
शीर्षक तो बहुत अच्छा और प्रेरणादायी लग रहा है.
ReplyDeleteफिर ऐसा क्या था आपकी पोस्ट में...??