Thursday, July 14, 2011
दुनिया बदलने की खबर
कहीं सुनी तो होगी
कहकहों के शोर में
किसी के सिसकने की आवाज
तेज़ हँसी के बीच किसी की
खामोश मुस्कुराहट
कहीं दूर जब
कोई सितारा टूटता होगा
मचलती होंगी सैंकड़ो ख्वाहिशें
लेकिन
नहीं होगा अहसास उसकी
टूटन का
कहीं घुट गई होगी चीख
किसी अजन्मे की
गर्भ में ही
या फ़िर
सियारों के शोर और
कूड़े के ढेर में दबकर
रह गया होगा
क्रंदन किसी
नाज़ायज या नामुराद का
कब सोचा होगा
किसी ने
बहलाते,फुसलाते,सहलाते
हैवानियत के ये हाथ
रौंद देंगे किसी
मासूम का बचपन
या किसी गुनहगार की
बुलंद आवाज के नीचे
दब कर रह गई होगी
किसी बेगुनाह की बेगुनाही
कहीं सुना तो होगा
तोड ली गई कलियाँ
भून डाला तंदूर में
हँसता, खिलखिलाता
बचपन
क्या शीशे सी पिघल रही है
कानों में
एक ओर कसाब के
जन्म की किलकारियाँ
सुन भी रही है
तेज़ धमाकों में
आतंक के नाचने-गाने की धुन
क्यों हो रहा है शोर
चिथड़े-चिथड़े होती
मानवता का
क्यों नहीं सुनाई पड़ रही कहीं
दुनिया बदलने की खबर...
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एक छोटा सा शहर जबलपुर... क्या कहने!!! न न न लगता है हमे अपने शब्द वापिस लेने होंगे वरना छोटा कहे जाने पर जबलपुर वाले हमसे खफ़ा हो ही जायेंगे....
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सबसे पहले आप सभी को नव-वर्ष की हार्दिक शुभ-कामनायें... कुछ हॉस्य हो जाये... हमने कहा, जानेमन हैप्पी न्यू इयर हँसकर बोले वो सेम टू यू माई डिय...
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ओह ..बहुत मार्मिक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteयथार्परक रचना ...........
ReplyDeletebahut sateek aur marmsparshi rachna.
ReplyDeleteisi ke tahat maine bhi ek nayi post dali hai jara dekhiyega...
http://anamika7577.blogspot.com/2011/07/blog-post_13.html
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना!
ReplyDeleteएक सशक्त रचना जिनमें आपने बहुत ही सटीक शैली में हो रहे आतंकी गतिविधियों के प्रति न सिर्फ़ अपना आक्रोश, क्षोभ और विरोध दर्ज़ किया है बल्कि कई प्रश्न भी खड़े किए हैं जिनका उत्तर हमें जल्द से जल्द ढूंढ़ना चाहिए वर्ना बहुत देर हो चुका होगा ...!
ReplyDeleteएक सशक्त रचना जिनमें आपने आतंकी गतिविधियों के प्रति न सिर्फ़ अपना आक्रोश, क्षोभ और विरोध बहुत ही सटीक शैली में दर्ज़ किया है ...!
ReplyDeleteये आतंकवादी दरअसल अमन के दुश्मन हैं। इनके कुछ आक़ा हैं, जिनके कुछ मक़सद हैं। ये लोकल भी हो सकते हैं और विदेशी भी। जो कोई भी हो लेकिन इनके केवल राजनीतिक उद्देश्य हैं। ये लोग चाहते हैं कि भारत के समुदाय एक दूसरे को शक की नज़र से देखें और एक दूसरे को इल्ज़ाम दें। कुछ तत्व नहीं चाहते कि जनता अपनी ग़रीबी और बर्बादी के असल गुनाहगारों को कभी जान पाए। जनता का ध्यान बंटाने और उन्हें बांटकर आपस में लड़ाने की साज़िश है यह किसी की। इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं, उन तक पहुंचना भी मुश्किल है और उन्हें खोद निकालना भी। कुछ जड़ों से तो लोग श्रृद्धा और समर्पण के रिश्ते से भी जुड़े हुए हैं। ऐसे में कोई क्या कार्रवाई करेगा ?
आतंकवाद के ख़ात्मे का एकमात्र उपाय Aatankwad Free India
आज 15- 07- 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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आक्रोश का सटीक चित्रण किया है।
ReplyDeleteयथार्परक रचना .........
ReplyDeleteलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।
बेहद यथार्थपरक और प्रभावी अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत ही शसक्त और बेहतरीन रचना ।
ReplyDeletemarmik lekin yatharth.....kahin aapke dil ke kisi kone se uthti hui awaz hai ye....
ReplyDeleteआपकी संवेदन शीलता के प्रति नतमस्तक हूँ. आप का मुंबई आना कब हो रहा है....
ReplyDeleteकुलवंत
bahut maarmik prastuti....
ReplyDeleteआज के जीवन कि सहज अभिव्यक्ति , शब्द मन में आंदोलन कर रहे है ..
ReplyDeleteआभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
बहुत मार्मिक
ReplyDeletehttp://snblast.blogspot.com/