पँचवटी पिलानी राजस्थान |
वास्तविकता पर आधारित एक प्रकाशित रचना...
आज सब कुछ
बदला-बदला सा है,
उन रोती बिलखती आँखों में
नही है अंगारे
उन होठों पर
गाली भी नही है
हाँ दर्द झलक रहा है
दुनिया भर का दर्द
कि कैसे जीयेंगे हम
इन बच्चों का क्या होगा
हाय बाबूजी
हमे अनाथ कर गये
चीखे हवा में
कलाबाजियाँ खाने लगी
कि हवा भी
आदमी के दोगलेपन से
बरगलाने लगी
बूढ़ा मरता क्यूँ नही
खाँसता रहता है रात भर
न दिन में चैन
न रात मे आराम
बच्चे भी परेशान
हे भगवान ये
कब जायेगा शमशान
जाने क्यों समझता ही नही
बूढ़ा मरता ही नही....।
बहुत प्रभावित करती रचना ..... यही दोगलापन है अब रिश्तों में ...समाज में ...परिवारों में....
ReplyDeleteकब उतरेंगे यह नकाब हमारे चेहरे से सच्चाई को दर्शाती हुई रचना , आभार
ReplyDeleteयथार्थ!
ReplyDeleteजाने क्यों समझता ही नही
ReplyDeleteबूढ़ा मरता ही नही....।
aapne to ek dum se dard ke saath vastvikta ko samne rakh diya!!
शानू की एक ओर कड़वी सच्ची रचना।! यह पृथ्वी भी बेबस बुज़र्गो के लिये बिलखती रोती होगी। ज़माने के मतलब फरोश बच्चों को कब होश आयेगा।
ReplyDeleteरमेश
कटु सत्य को कहती एक यथार्थ रचना ...
ReplyDeleteपिलानी का पंचवटी बहुत बार देखा है ... सुन्दर चित्र
आज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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मार्मिक लेकिन कटु यथार्थ से रूबरू करवाती इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
adabhut
ReplyDeletesunder chitran kiya.
ReplyDeleteकटु यतार्थ को उजागर करती हुई मार्मिक रचना...
ReplyDeleteसच में जिन्दगी के सच को उजागर करती कविता
ReplyDeleteना जाने क्यों लोग ...दोहरा जीवन जीते है ...
खुद के रिश्तो को ढ़ोते क्यों है ....जीते क्यों नहीं उन रिश्तो को
दुःख होता है जब अपने ही अपनों को नहीं समझते
aap sabhi ko bahut bahut dhanyavaad. hindi fonts kaam nahi kar raha padhne mai asuvidha hogi kshama karen...
ReplyDeleteek yatharth, ek khara sach, behatar post, badhai
ReplyDeleteजीवन की कटु सच्चाईयों से रूबरू कराती, मर्म स्पर्शी सुंदर रचना. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
bahut sundar rachnaa
ReplyDeletekhud kaa jeenaa
kisi aur ke jeene se
jyaadaa zarooree ho gayaa
rishton ko curfew lag gayaa
swaarth mein insaan
insaaniyat bhool gayaa
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 01-12 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज .उड़ मेरे संग कल्पनाओं के दायरे में
जीवन का यथार्थ यही है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या कहने।
हकीकत के बिल्कुल करीब या कहें हकीकत ही ये है।
सच्चाई को सामने रखती हुई रचना. इंसान मुखौटा लगाये घूमता है !
ReplyDeleteबेहतरीन पस्तुति !!
क्या कहें सुनीता जी ! कड़वा सच बयान किया है आपने.
ReplyDeleteइंसान के दोगलेपन पर करारा प्रहार करती बहुत ही सशक्त रचना ! मरणोपरांत जिस प्यार और सम्मान का प्रदर्शन किया जाता है उसका सौंवा अंश भी बुजुर्गों के जीवन काल में यदि उन्हें मिल जाये तो यह धरती स्वर्ग सी सुन्दर हो जाये !
ReplyDeleteकटु सत्य को उद्धृत करती प्रभावशाली रचना...
ReplyDeleteसादर...
oh...sach me katu satya ...
ReplyDeletedil ko chhu liya aabhar
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