गूगल से साभार |
कौन घड़ी में भैया हम घर में टीवी लाये,
केबल वाले ने भी आकर झटपट तार लगाये,
झटपट तार लगाये , टी वी हो गया चालू,
दोसो रुपये में बिकने लगा दस रूपये का आलू,
दोसौ रूपये का आलू! हमने कान लगाये,
अंकल चिप्स दो लाकर बच्चे चिल्लाये,
कौन घड़ी में भैया हम घर में टी वी लाये।
देखते ही देखते सज गई सितारों की दूकान,
तेल बेचे बिग बी गंजे हुए किंग खान,
गंजे हुए किंग खान बोले डिश टी वी लगवायें,
टा-टा स्काई को अच्छा आमिर बतलायें,
ऎसा हुआ धमाल कि हमको चक्कर आये,
कौन घड़ी मे भैया हम घर में टी वी लाये।
बीवी बोली आज हमे नवरतन तेल लगाना है,
बिग बी जैसे ठंडा-ठंडा कूल-कूल हो जाना है,
ठंडा-ठंडा कूल कूल जो सर्दी का अहसास कराये,
दफ़्तर से श्रीमान जी आप तेल बिना न आयें,
तेल बिना क्या पूछ हमारी कोई हमको बतलाये,
कौन घड़ी मे भैया हम घर में टी वी लाये।
तेल लगा बालो में जब श्रीमती मुस्कुराई,
ऎश्वर्या ने कोका कोला की सी सीटी बजाई,
हम दौड़े घर के भीतर न हो जाये कोई फ़रमाइश,
बेटा बोला कोला रहने दो पापा लादो स्लाइस,
मां ने भी चाहा की बालो पर हेयर डाई लगवाये,
कौन घड़ी मे भैया हम घर में टी वी लाये।
चुन्नू बोला डेरी मिल्क हमको लगती प्यारी,
सनफ़िस्ट की रट लगाने लगी दुलारी,
टॉमी को भी अब हम पेडीग्री खिलायेंगे
वरना देखो प्यारे पापा हम भूखे ही सो जायेंगे,
बाल हठ के आगे हमको चक्कर आये,
कौन घड़ी मे भैया हम घर में टी वी लाये।
घर हमारा बन गया फ़रमाइशी दुकान,
विज्ञापनों की दौड़ में ऎसा हुआ नुकसान,
ऎसा हुआ नुकसान प्याज कटे बिन आँसू आये,
बदल दे घर का नक्शा आप एल सी डी लगवाये,
सुनकर ये फ़रमान हम न रोये न हँस पाये,
कौन घड़ी मे भैया हम घर में टी वी लाये।
सुनीता शानू
ha haha ha ha ha ha ha a
ReplyDeleteभई वाह मजे आ गए पढ़कर...खूब मजा आया...
ReplyDeleteयहां भी आएं
http://veenakesur.blogspot.com/
क्या बात है! रोचक!! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteआभार, आंच पर विशेष प्रस्तुति, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पधारिए!
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
मजेदार...आनन्द आया.
ReplyDeleteहा हा हा ...
ReplyDeleteमध्यमवर्गीय परिवारों की व्यथा को व्यक्त करती बहुत ही सुन्दर एवं प्रभावी हास्य रचना :-)
ReplyDeletewah wah
ReplyDeleteexcellent..
badayi..ho..khoobsurt pyari..si..rachana...
kulwant
बहुत ही मजेदार जी,
ReplyDeleteसार्थक लेखन के लिए शुभकामनाये.......
ReplyDelete“20 वर्षों बाद मिला मासूम केवल डॉन से"
आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर
मजेदार...आनन्द आया.
ReplyDeleteha ha ha ha ha वाह क्या व्यंग है। बधाई।
ReplyDeleteअरे वाह! क्या बात है इस व्यंग रचना की .. हमारी उपभोक्ता-वादी मानसिकता पर जम कर चोट करती हुई ..वधाई !
ReplyDeleteलेकिन रचना को कसने में मेहनत कम की हुई है..इसमें और भी धार आ सकती थी
मौलिकता की छुंअन लिए हास्य कम व्यंग !
ReplyDeleteवाह टीवी ला कर तो बडी मुसीबत हो गई भाई । मजा आ गया पढ कर ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर. मजा आ गया.
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteha ha ha ha ...mazedar abhivykti.....
ReplyDeletehahaahahahahahahaa
ReplyDeletejabardast hasye he
navratan tail ka bhugtbhogi to me bhi hun
2 Nov 2009 से 6 अगस्त 2010 की चुप्पी से छोटी है... 1 जून से 29 सितंबर की चुप्पी.....
ReplyDeleteबहुत रोचक कविता है........बधाई !
ReplyDeleteप्रिय सुनीता शानू जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
आपके यहां हर रंग हैं , बहुत ख़ूबसूरत है आपका ब्लॉग़ ! बस, शिकायत है तो यह कि आपने पोस्ट बहुत दिन से नहीं बदली :)
कौन घड़ी में भैया हम घर में टीवी लाये ? बहुत मज़ेदार रचना है … पहले भी पढ़ कर गया था … आज हस्ताक्षर भी किए हैं … :)
होली की अग्रिम शुभकामनाओं सहित
चंद रोज़ पहले आ'कर गए
विश्व महिला दिवस की हार्दिक बधाई !
शुभकामनाएं !!
मंगलकामनाएं !!!
♥मां पत्नी बेटी बहन;देवियां हैं,चरणों पर शीश धरो!♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार