चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Tuesday, May 6, 2008

जबलपुर की यात्रा...

एक छोटा सा शहर जबलपुर...क्या कहने!!!
न न न लगता है हमे अपने शब्द वापिस लेने होंगे वरना छोटा कहे जाने पर जबलपुर वाले हमसे खफ़ा हो ही जायेंगे...:) तो दोस्तों एक खूबसूरत महानगर जबलपुर...
गये तो थे हम हकीम साहेब से ससुर जी का इलाज़ करवाने
मगर स्टेशन पर ही पकड़े गये कवि महोदय के द्वारा...उन्होने बड़ी गर्म जोशी के साथ हमारा स्वागत किया...तमाम स्थानीय अखबारों के साथ जिनमें खबर थी एक कवि सम्मेलन की और सम्मेलन में था हमारा नाम...:) ये कवि कोई और नही सुप्रसिध्द गीतकार और समीक्षक

श्री आनन्द कृष्ण थे...




इसके बाद मिले हम हमारे बच्चों से जो जबलपुर में ही रह कर पढ़ाई कर रहे है...हमारी दीदी के बच्चें...यानी की हम हुए मौसी...:)
शाम को हुआ कवि सम्मेलन जिसमें जाने माने कवि विराजमान हुए...

ये लीजिये कौन कहता है कि बच्चों में प्रतिभा नही होती...जबलपुर का तो बच्चा-बच्चा कवि है..तभी तो यह नन्हा कवि मंच पर आकर माईक झपट रहा है...अरे उसे भी सुना लेने दो भाई...

(मनीष तिवारी जी व उनके सुपुत्र)
सुनाये बिना तो मानेगा नही देखिये जरा उसे फ़िक्र नही है कपड़ो की मगर कविता की दशा सुधारनी जरूरी है...


(गीतकार कवि युसुफ़ व नन्हे कवि तिवारी)
और सम्मेलन के बाद आनंद जी की सहधर्मिणी के हाथ से बना सुस्वादिष्ट भोजन मिला और खोये की जलेबी किसकी तारीफ़ करें भाभी जी की या भोजन की समझ नही पा रहे...



और दूसरा दिन...
चलिये चला जाये भेडा़ घाट...


ये है हमारी टीम...सारे बच्चे एक मौसी...और अंत में बैठा है एक और बच्चा...जो हमें जबलपुर मे ही मिला...



(आदित्य,आशा,मै सुनीता,पिंकी,व रिचा)

(सुमित ,रिचा,आदित्य व पिंटु)

जीहाँ ये है आदित्य नई दुनिया में एक्जीक्यूटिव... जो आये तो थे हमें जबलपुर घुमाने मगर बच्चों के साथ मिलकर हमें मौसी कहने लगे...देखिये जिन्दगी क्या-क्या रंग दिखाती है...बेगाने भी बन जाते है अपने...


(आदित्य श्रीवास्तव)



चलिये विदा दीजिये हमें जबलपुर वालो....


आँखों में नमी होठों पे मुस्कान है,

क्या यही जबलपुर की पहचान है...




ये मैं हमारे कोच के साथी स्टीफ़न एंड बिलियर्ड हार्वे फ़्राम अमेरिका...


सुनीता शानू









22 comments:

  1. बाकी कवि तो आते जाते रहते है पर ये नन्हें कवि हमारे दिल मे बस गए है ....

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  2. नन्हा कवि ने मन मोह लिया. बहुत बढ़िया . हाँ एक बात और कहना चाहूँगा की जबलपुर छोटा शहर नही है . आचार्य विनोवा भावे ने इस शहर को संस्कारधानी का नाम दिया है यहाँ संस्कार उपजते पनपते है यहाँ के संस्कारवान जन देश विदेश मे जबलपुर शहर का परचम फहरा रहे है . यदि आप यहाँ अधिक समय तक यहाँ रहे तो जबलपुर शहर के बारे मे अधिक जानकारी मिल सकेगी .हमारा शहर किसी महानगर से कम नही है मुझे इस बात का फक्र है . धन्यवाद

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  3. अरे महेंद्र भाई आप भी वहाँ थे...ओह्ह मिल नही पाये...चलिये इस बहाने पता तो चला...और बहुत कुछ जबलपुर के बारे में...

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  4. aare wah bahut mast yaadein,pics bahut sundar,aur manha kavi dil mein bas gaya:):)

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  5. वाह , बड़िया संस्मरण, बड़िया तस्वीरें। आशा है आप के ससुर जी अब ठीक होगें

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  6. और तो सब बढ़िया लगा देख कर- मगर लगता है जबलपुर आपने ठीक से देखा नहीं, तभी उसे एक छोटा सा शहर कह गई.

    आशा करता हूँ कि पिता जी की तबीयत को आराम आया होगा हकीम साहब से मिल कर. शुभकामनायें.

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  8. वाह सुनीता जी इसे कहते हे एक पथं दो काज हकीमजी से भी मिल आई ओर कवि सम्मेलन मे भी हो आई, बहुत अच्छी जानकारी दि आप ने ओर फ़ोटो भी बहुत सुन्दर हे, आप के ससुर जी की तबियत अब ठीक होगी .सब से अच्छा वो कवि लगा जिस के न्नहे न्नहे हाथो मे माईक हे.

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  9. अरे वाह, आपकी कविताओं का परचम ऐसे ही फहराये, हमारी शुभकामनायें ।

    महेन्द्र भाई का कहना सौ फीसदी सहीं है, जबलपुर संस्कारधानी है । छत्तीसगढ प्रदेश बनने के पहले, हमें उच्च न्यायालय, आयकर मुख्यालय व वानिकी संबंधी कार्यों के लिये जबलपुर जाना होता था तब हम ओशो व कई आदरणीय साहित्यकारों की जजनी जबलपुर को प्रणाम कर आते थे । अब तो बस हम इतना जानते हैं कि जबलपुर हमारे भाई महेन्द्र मिश्रा जी का शहर है, पिछले दिनों पचमढी के सैर पर जाते और आते हुए मन में गिल्टी बनी रही कि हम महेन्द्र भाई, 'नेपियर टाउन' व जबलपुर से नहीं मिल पाये ।
    नर्मदा के आंचल पर स्नेह और प्यार का उमडना स्वाभाविक ही है ।

    संजीव तिवारी

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  10. आपने फिर से जबलपुर की याद ताजा कर दी..मैं १९९८ में जबलपुर गया था..एक बैक का एक््जाम देने...मेरी एक दीदी भी रहती है ..जबलपुर में...इतना प््यारा शहर मैने नहीं देखा था...शान््त और सरल लोग..भेराघाट...और त्रिपुरी का शहर...वो नर्मदा की धारा...और तोप फैक््ट्री का इलाका...लोगों ने कहा कि जबलपुर को राजभोगी शहर कहा जाता है...वजह ..मध््यप्रदेश में चार शहर बड़े अच््छे हैं...रा से रायपुर(उस समय रायपुर, मध््यप्रदेश में ही था)..ज से जबलपुर...भो से भोपाल..और ग से ग््वाइलियर..और इ से इंदौर...मुझे तो शुरु मे लगा कि अच््छे िमठाई मिलने की वजह से लोग इसे राजभोगी शहर कहते हैं...मैं वहां से ढ़ेर सारे किताब लाया था...वाकई..हिंदी की किताबे तो जबलपुर में मिलती हैं...मै याद करता हूं...लार्डगंज थाने के बाहर मैनें..करीब २५-३० किताबें खरीदी थी...लोग कहते थे कि क््या मैं हिंदी साहित््य पर रिसर्च कर रहा हूं.....इलाहावाद..बनारस..पटना..और इंदौर .की कड़ी में जबलपुर भी शामिल है..जहां हिन््दी का साहित््य अब भी धड़कता है...

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  11. अनुराग जी, महेंद्र जी,महक जी, अनीता जी,समीरलाल जी(जो हमारे आने से पूर्व ही जबलपुर से पलायन कर गये थे)राज भाटिया जी,सुरभी जी,व सुशांत जी...आप सब की आभारी हूँ...
    जबलपुर की जितनी तारीफ़ की जाये कम है...समय की कमी की वजह से मै ज्यादा देख नही पाई थी,मगर नर्मदा का जल और पँचवटी बहुत अच्छी व मनोरम लगी...समीर भाई
    पिताजी की हालत अब ठीक है...आपको बहुत याद करते है...

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  12. अच्छी फोटो और विवरण।
    नन्हें कवि के तो क्या कहने।

    आशा है कि आपके पिता जी अब ठीक होंगे।

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  13. वाह वाह, बधाई हो!!
    हकीम साहेब के इलाज़ से असर हुआ?

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  14. श्रद्धेय सुनीता जी,
    आपकी जबलपुर यात्रा की बारे में आपकी अभिव्यक्ति आपके व्यक्तित्व जैसी ही सहज अकृत्रिम, और बेलौस है. मुझे मालूम है कि आपके प्रवास के दौरान आपको कौन-कौन सी मुश्किलात का सामना करना पडा था,,,,,,,,,,,, और मैं उन पर आपसे औपचारिक क्षमायाचना भी नहीं कर पाया था. हमारे सीमित संसाधनों और मौसम की बद-मिजाजी (४३ डिग्री तापमान) से हम ज्यादा कुछ नहीं कर पाये.............
    बहरहाल अगर आपको कोई असुविधा हुई हो (भले ही आप उसे अपने बड़प्पन के चलते अनदेखा कर चुकी हों तो भी-) हम तहे-दिल से मुआफी के तलबगार हैं. आपके संक्षिप्त प्रवास ने जबलपुर में स्थायी निशान छोड़े हैं.
    आपका स्नेह मिलता रहेगा, हम यही कामना करते हैं.
    आशा है पिताजी स्वास्थ्य-लाभ ले रहे होंगे.
    शुभेच्छु-
    आनंद कृष्ण
    जबलपुर.

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  16. ममता जी संजीत जी आनन्द कृष्ण जी...आप सभी का धन्यवाद...

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  17. heartiest congratulations..very nice ...kavi kulwant
    ?

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  18. बड़ा अच्छा लगा आपका संस्मरण....और नन्हें कवि की फोटो तो लाजवाब है

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  19. आज ही आपकी इस पोस्ट को पढ़ने का मौका मिला. हम भी कुछ दिन के लिए मम्मी के पास दिल्ली में थे.उनकी तबियत खराब होने के कारण किसी से न मिल पाए और न ही फोन कर पाए.
    आशा है अब आपके पिता जी की तबियत ठीक होगी. यात्रा का विवरण और चित्र तो मन भाए लेकिन नन्हे कवि ने मन मोह लिया, उसे खूब सारा आशीर्वाद.

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  20. ARE WAAH SUNITA g AAP TO JABALPUR HO AAYE THODA HOSHANGABAD TAK BHEE AA JAATE BHAI BOHUT PAAS HAIN

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  21. No post fro so many days?
    Anjaan..

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  22. संस्मरण बड़ा जीवंत है, जी !

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य