वो उतरी है जिस रोज आसमान से
रिम-झिम सावन की फ़ुहार बनके
झिलमिलाती रही ऎसे आँगन में मेरे
असंख्य मोतियों का श्रृंगार बनके।
छूती हूँ जब भी मै होठों से उसे
महक उठती हूँ सोंधी बयार बनके
चमकती रही ऎसे जीवन में मेरे
आई हो खुशियों का संसार बनके।
एक नन्ही सी बूँद मिली जब उसे
खिल गई हर कली बहार बन के
मुस्कुराई फ़िर ऎसे गजरे में मेरे
सज गई हो जूही का हार बनके।
चाँद की खामोशी खली फ़िर उसे
चमकी बादल में अंगार बनके
बरसती रही ऎसे मधुबन में मेरे
सावन की पहली बौछार बनके।
अहसास प्रेम का हुआ जब उसे
बह चली आँसुओं की धार बनके
पिघलती रही वो हृदय मे मेरे
प्रियतम का पहला प्यार बनके...
सुनीता शानू
चलिए देर आये दुरस्त आये....अच्छा लिखा है......
ReplyDeleteचाँद की खामोशी खली फ़िर उसे
ReplyDeleteचमकी बादल में अंगार बनके
बरसती रही ऎसे मधुबन में मेरे
सावन की पहली बौछार बनके।
सुंदर लिखा ..लिखा तो यही अच्छा है ..
jab bhi aati ghata bankar,
ReplyDeletebaras kar jaati or
tript ho jata saagar.
aapki rachan ka hamesha intejaar rahta hai
कभी कभी होता है ऐसा कि कहीं मन नहीं लगता तब मन एकांत वास पर चला जाता है और जब लौटता है तो ऊर्जा लेकर आता हे । आशा है आप सपरिवार स्वस्थ और सानंद होंगीं । संभवत: अगले माह दिल्ली आने का कार्यक्रम है संभव हुआ तो आपसे मिलने का प्रयास करूंगा ।
ReplyDeleteBahut khub
ReplyDeleteहमारे स्नेह की तरंगे आप तक पहुँच ही गई...इतने दिनों बाद आपका यह प्यारा प्रयास हमें अच्छा लगा.
ReplyDeleteअहसास प्रेम का हुआ जब उसे
ReplyDeleteबह चली आँसुओं की धार बनके
पिघलती रही वो हृदय मे मेरे
प्रियतम का पहला प्यार बनके...
बहुत अच्छा लिखा है। बरसात का सम्पूर्ण आनन्द उठाएँ। सस्नेह
प्रेम की अनुभूति का उदगार हृदयस्पर्शी है!
ReplyDeletebahut sundar rachana . kafi arse baad apki achchi rachana padhane mili hai . bahut khobasoorat. badhai.
ReplyDeleteधन्यवाद सुन्दर कविता के लिये
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.बहुत उम्दा,बधाई.
ReplyDeleteअहसास प्रेम का हुआ जब उसे
ReplyDeleteबह चली आँसुओं की धार बनके
पिघलती रही वो हृदय मे मेरे
प्रियतम का पहला प्यार बनके...
बहुत सुन्दर
ashanandआदरणीय सुनीता जी,
ReplyDeleteकाफी दिनों के बाद आपकी रचना पढी. आपकी कविता पर मेरी समीक्षा निम्नानुसार है-
आपकी इस रचना में आलंकारिकता सहज रूप में आयी है. कविता का सौन्दर्य अलंकारों से वर्धित होता है. अति-आलंकारिकता कविता को कृत्रिम बना देती है. सहज रूप में निरायास आए अलंकार कविता का स्वरुप बहुगुणित कर देते हैं.
इस कविता की प्रारम्भिक पंक्तियों में ही प्रकृति के "मानवीकरण" जैसे कठिन अलंकार का सफलता पूर्वक निर्वहन प्रभावित करता है-
"वो उतरी है जिस रोज आसमान से
रिम-झिम सावन की फ़ुहार बनके "
और इसी के समानांतर मानव के प्रकृतिकरण की सहज अभिव्यक्ति-
छूती हूँ जब भी मै होठों से उसे
महक उठती हूँ सोंधी बयार बनके
यहाँ रचनाकार स्थूल अर्थ में वर्षा-जल के स्पर्श से अलौकिक आनंद की प्राप्ति करती है और भावार्थ में वह एक स्त्री होने के कारण पृथ्वी से अपना तादात्म्य स्थापित करती है और स्वयं ही चिरंतन तृषा से मुक्त होती हुई संतृप्त धरा ही बन जाती है. कविता में छायावादी प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है जब ये पंक्तियाँ सामने आती हैं-
एक नन्ही सी बूँद मिली जब उसे
खिल गई हर कली बहार बन के
मुस्कुराई फ़िर ऎसे गजरे में मेरे
सज गई हो जूही का हार बनके।
यह "विराट" के समक्ष "लघु" का सामर्थ्य-प्रदर्शन है, यह स्थूल के विरुद्ध सूक्ष्म का विद्रोह है. जो "छायावाद" के समेकित रूप, सौन्दर्य, सौष्ठव और प्रभाव की श्रेष्ठ व सार्थक अभिव्यक्ति है. इसमें नई कविता आन्दोलन की क्षणवादी प्रवृत्ति के गुणसूत्र भी दिखाई देते हैं
इन पंक्तियों में विरोधाभास अलंकार की छटा और अद्भुत रस का समन्वय दृष्टव्य है-
चाँद की खामोशी खली फ़िर उसे
चमकी बादल में अंगार बनके
कविता का समग्र भाव-पक्ष इन पंक्तियों में अपनी पूरी उष्णता और प्रभविष्णुता के साथ रूपायित होता है-
अहसास प्रेम का हुआ जब उसे
बह चली आँसुओं की धार बनके.
प्रेम का गहन-सघन प्रतीकन आंखों से किया और आंसुओं से लिखा जाता रहा है.
पूरी कविता में दृष्टांत, अन्योक्ति, रूपक, उत्प्रेक्षा और उपमा अलंकार प्रच्छन्न रूप में यत्र-तत्र मणि-मानिक से अपनी उपस्थिति की अनुभूति कराते हैं. कविता में एक छोटी सी बूँद में छुपी असीम संभावनाओं को उकेरने में सफल रही है. पूरी कविता पढने के बाद ऐसा प्रतीत होता है, जैसे खूब तपिश के बाद बारिश की झमाझम झड़ी ने धरती का पोर-पोर जगा दिया हो और बूंदों ने हरी रोशनाई से हस्ताक्षर कर दिए हों.
शुभकामनाओं सहित-
आनंदकृष्ण, जबलपुर
मोबाइल : 09425800818
बहुत सुंदर
ReplyDeleteनैसर्गिक
भाव पूर्ण रचना.
जैसे बूंदों का श्रृंगार ही है
शब्द रूप में.
=====================
बधाई
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
bahut der lagaa di mitra .. aate aate...
ReplyDeleteazi kaha the itne din..
sab thik to hai..
aate hi dhamaaka..
bahut sundar Geet...
सचमुच - एक मुद्दत के बाद लिखने की सारी कसर इस विशेष विशिष्ट विश्रान्ति प्रदायक कविता में पूरी कर ली गई लगती है।
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ReplyDeleteआप सभी को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं,
ReplyDeleteआनन्द जी आपकी टिप्पणी पर और टिप्पणी करने की हिम्मत नही है,मुझे खुद नही पता मेरी रचना में इतने अलंकार भी हैं,आपको कोटि-कोटि धन्यवाद।
हरिराम जी आपकी एख साथ कई टिप्पणी हो गई थी गलती से इस लिये हटानी पड़ी....
बहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteबेहतर भाव
निरन्तरता अपेक्षित
अभिव्यक्ति अच्छी लगी.. भावनापूर्ण है. बस एक छोटा सा सुझाव है.. चौथी लाईन मे "असंख्य" की जगह "अगिनत" शब्द का प्रयोग करके देखें कैसा लगता है.
ReplyDeleteडा. अचल गर्ग
Hapy independence day to u also..
ReplyDeleteYou r invited for my poetry book release function..
Bahut sunder. Shanuji aap mere marathi blog par aain thi mera hindi ka blog hai swapnranjita.wahan aapki yippani ka intajar rahega.
ReplyDeleteअति सुंदर.
ReplyDeleteबहुत उम्दा..
कई दिनों बाद पढ़ा आपका लिखा.
पढ़ कर अच्छा लगा.
एक नन्ही सी बूँद मिली जब उसे
ReplyDeleteखिल गई हर कली बहार बन के
मुस्कुराई फ़िर ऎसे गजरे में मेरे
सज गई हो जूही का हार बनके।
Bahut hi achchhi line hai. Badhai
kavita ke sath-sath chitra bahut achchha lagaa. badhai
ReplyDeleteशुभकामनाएं:
ReplyDeleteश्री कृष्ण जन्माष्टमी की ढेरों शुभकामनाएं |
हिन्दी में लिखने की लिए पर जायें
http://hindiinternet.blogspot.com/
सुनीता जी
ReplyDeleteअद्भुत रचना...प्रेमसिक्त रचना जिसका शब्द शब्द दिल में गहरे उतर जाता है.....वाह.
नीरज
sundar.....!
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता.
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