बरसों से प्यासी धरती पर
उगा हो जैसे नन्हा पौधा,
बड़े प्यार से उसने मुझको
मौसी माँ जैसी जब बोला...
हुई सरसराहट कानों में तब
जैसे अमृत सा रस घोला,
लगा अंक से मैने उसको
जब प्यार से बेटा बोला...
एक जन्म का नही ये रिश्ता
लगता है सदियों पुराना,
जन्मा नही है तेरी कोख से,
किन्तु माँ मैने तुझको माना...
सुनीता शानू ( मन की एक भावना है जिसे मैने एक छोटी सी कविता का रूप दिया है)
सुनीता जी,
ReplyDeleteमौसी = मां सी... सही लिखा है आपने... और कभी कभी तो मौसी... मां से भी बढ कर हो जाती है... भावभिनी रचना के लिये बधाई
अनुभूति को अच्छी अभिव्यक्ति दी है आपने
ReplyDeleteसुन्दर रचना भावों को अच्छी तरह से कहा है आपने सुनीता जी
ReplyDeleteअति सुन्दर.
ReplyDeletebahut komal bhav,sundar
ReplyDeleteaha ye to jaise mere hi man ki baat ho..!
ReplyDeleteसबके भाग्य में सब कुछ नही होता....बधाई.. अच्छा लगा...
ReplyDeleteवाह, अच्छी कविता है..!!
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