चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Tuesday, May 6, 2008

मौसी


बरसों से प्यासी धरती पर
उगा हो जैसे नन्हा पौधा,
बड़े प्यार से उसने मुझको
मौसी माँ जैसी जब बोला...
हुई सरसराहट कानों में तब
जैसे अमृत सा रस घोला,
लगा अंक से मैने उसको
जब प्यार से बेटा बोला...
एक जन्म का नही ये रिश्ता
लगता है सदियों पुराना,
जन्मा नही है तेरी कोख से,
किन्तु माँ मैने तुझको माना...

सुनीता शानू ( मन की एक भावना है जिसे मैने एक छोटी सी कविता का रूप दिया है)

8 comments:

  1. सुनीता जी,

    मौसी = मां सी... सही लिखा है आपने... और कभी कभी तो मौसी... मां से भी बढ कर हो जाती है... भावभिनी रचना के लिये बधाई

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  2. अनुभूति को अच्छी अभिव्यक्ति दी है आपने

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  3. सुन्दर रचना भावों को अच्छी तरह से कहा है आपने सुनीता जी

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  4. bahut komal bhav,sundar

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  5. सबके भाग्य में सब कुछ नही होता....बधाई.. अच्छा लगा...

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  6. वाह, अच्छी कविता है..!!

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य