Sunday, August 12, 2007
हास्य कविता
(इस तस्वीर से किसी को आपत्ति हो तो हटाई जा सकती है )
छः महिने की छुट्टी लेकर हम तो बहुत पछताये,
दो हफ़्ते में ही देखो लौट के बुध्दू घर को आये...
सिगरेट,कोकीन के जैसे ही ब्लागिन ने नशा चढा़या
इस ब्लागिन के चक्कर ने निकम्मा हमें बनाया...
जाकर ऑफ़िस में जब बैठे, लेखन का ही ध्यान रहा
बिजिनेस मीटिंग में भी ,कविता का ही भान रहा...
चाय के सब ऑडर हमने उलट-पलट कर डाले
मैनेजर,क्लर्क सभी को कविता पर भाषण दे डाले...
छोड़ काम-धाम सभी जब बैठे तुकबंदी करने
एक-एक कर लग गये सभी कविता लिखने...
कुछ ना पूछो भैया सबने कैसा हुड़दग मचाया
अच्छे खासे ऑफ़िस को कवि-बंदर-छाप बनाया...
दो हफ़्ते की इस दूरी ने कितना हमे रूलाया
भूले बिजिनेस हम ,जब ख्याल कविता का आया...
न जायेंगे अब छोड़ तुम्हे ए कविता,
कहते है गुड़ खाके...
रहे सलामत अपनी ब्लागिन
करें टिप्पणी बरसाके...
सुनीता(शानू)
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सबसे पहले आप सभी को नव-वर्ष की हार्दिक शुभ-कामनायें... कुछ हॉस्य हो जाये... हमने कहा, जानेमन हैप्पी न्यू इयर हँसकर बोले वो सेम टू यू माई डिय...
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एक छोटा सा शहर जबलपुर... क्या कहने!!! न न न लगता है हमे अपने शब्द वापिस लेने होंगे वरना छोटा कहे जाने पर जबलपुर वाले हमसे खफ़ा हो ही जायेंगे....
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सब कुछ ठीक है पर ब्लागर निकम्मा नही हो सकता है।
ReplyDeleteचैटिग फाईटिंग के बाद भी निकम्मा ?
waah waah bahut achha......bas yahi chahunga ki aap isme aur achhi lines jodte rahiye.
ReplyDeleteBlogs aur Bloggers ki vaastvikta.
आपकी कविता कई लोगों के सत्य को बयान करती है।
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
वापस लौटने के लिए बधाई !
ReplyDeleteबधाई !:):)कहा था ना आपको यह नशा अब यूँ ना उतरेगा :):)..""लिखे बिना चैन कहाँ''
ReplyDeleteआपका स्वागत है फिर से :):)
चलो जी लौट के बुद्धु घर तो आए ना!!
ReplyDeleteसुबह का भूला अगर शाम को लौट आए तो उसे भूला नही कहते!!
शुक्रिया वापस आने के लिए, आपकी कविता miss कर रहे थे
ReplyDeleteगुरुवर समीरजी कहा करते हैं
ReplyDelete....ब्लागिंग कि दुनिया वो दुनिया है दोस्त, जहाँ चार पोस्ट तक तो सब संभव है, उसके बाद लौटना संभव नही, अभी भी संभल जाओ.
जिस किसी से दुश्मनी निकालनी हो उसे ब्लॉगिंग का नशा लगवा दो, देखो कैसे आदमी निकम्मा हो जाता है।
यह वो नशा है जो एक बार लगे बाद छूटता नहीं।
अब मित्र सागर तो हमारा कहा कह गये तो हम टिप्पणियों की बरसात में दो बूँद चुआ कर रुखसत होते हैं. बनेण रहे और व्यापार और ब्लॉगिंग दोनों को साथ साथ जीना सीख लें. :)
ReplyDeleteकुछ ना पूछो भैया सबने कैसा हुड़दग मचाया
ReplyDeleteअच्छे खासे ऑफ़िस को कवि-बंदर-छाप बनाया...
सही है...अच्छा लगी आपकी तुकबंदी...
स्वागत है आपका
अच्छी रचना। अब अच्छी और नयी आदतो को नशा कहना बन्द भी किया
ReplyDeleteअच्छी रचना। अब अच्छी और नयी आदतो को नशा कहना बन्द भी किया जाये।
ReplyDeleteयह कोशिश आपसे पहले बहुत कर चुके, अब तो कोई ब्लॉगिंग छोड़ने को कहता है तो हँसी ही आती है क्योंकि कुछ ही दिनो में बुद्दू यहीं नजर आता है. "लौट के बुद्धू घर को आए" की तरह.
ReplyDeleteवापसी मुबारक हो. चार लोगो को और चस्का लगाएं. चाय का जायका बढ़ जाएगा.
अच्छा हुआ कि लौट के बुद्दू घर को आये. हम तो तभी समझ लिये थे कि आप का मन चाय में काम काव्य में अधिक है -- शास्त्री जे सी फिलिप
ReplyDeleteहिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
पुनर्वापसी का स्वागत है, सुनीता जी!
ReplyDeleteहमें पता था कि आप जल्दी ही वापस आयेंगी, इसीलिये आपकी उस तथाकथित ’विदाई’ पोस्ट पर कोई टिप्पणी नहीं किये थे. वैसे आप आये भी तो क्या खूब आये! बहुत मजेदार कविता है. पर ये कविता पर भाषण मत दिया कीजिये, सब के लिये इसे झेलना सहज नहीं है.
kaafi aachi koshish ki hai aapne hasya kavita likhne ki....magar kavi kavi ninakkme nahi hota ;)
ReplyDeleteमालूम था मुझको इस नशे इस खुमारी का
ReplyDeleteनया फ़ंडा है ये हिट लेने का, विदेश उडारी का
@महाशक्ति जी धन्यावाद आपका ब्लागर निकम्मा नही होता ठीक कहा आपने...
ReplyDelete@सिध्दार्थ आपको भी शुक्रिया...
@दीपक जी शुक्रिया कविता की कोशिश यही रहेगी हास्य के साथ-साथ सत्य भी हो..
@मनीष जी स्वागत के लिये आभारी हूँ
@रन्जू दीदी आपको छोड़कर जाना तो मुनासिब ही नही...:)
@संजीत जी आप ठीक फ़रमा रहे है अच्छा लगा सुबह के भूले को आपने दिल से लगा लिया...हम तो सोच रहे थे की ज्यादा देर कि तो सभी दोस्त कहीं हमसे नाराज न हो जायें...
@विपुल जी शुक्रिया आपका...
@सागर जी सही फ़रमाया हुजूर...:)
@गुरूदेव आपकी आज्ञा शिरोधार्य...
@रीतेश जी आपको कविता पसंद आई बस ये तो लौटने पर जरा तुकबंदी थी आपका शुक्रिया...
@दर्द हिन्दुस्तानी जी आपका भी शुक्रिया...ये बस एक हास्य है फ़िक्र न करें...
@शुक्रियाँ संजय भैया आप कब आ रहे है चाय पीने...
@शास्त्री जी आपतो वैसे ही अंतर्यामी है...सब जानते है...शुक्रिया...
@अजय भैया शुक्रिया आपका...
@अनुपमा जी शुक्रिया...हाँ कवि निकम्मे नही होते...
सुनीता(शानू)
@मोहिन्दर जी...
ReplyDeleteआप भी लगता है विदेश यात्रा से आये हो...
क्या यमराज से साँठ -गाँठ कर लाये हो...
मेरे ब्लोग पर आकर लेते है मुझसे पंगा...
क्यो नही धोते हाथ जब बहती है गंगा...
हा हा हा
वैसे अच्छा लगा...हास्य में आपकी टिप्पणी और हँसा गई...
सुनीता(शानू)
अच्छा हुआ जो लौट आयी ।एक बार फिर से स्वागत है। बिल्कुल सही है ये ब्लॉगिंग का नशा ही ऐसा है कि इसके बिना रहना बड़ा मुश्किल है।
ReplyDeleteआज अपनी पोस्ट पर टिपण्णी देख कर हम समझ गए थे।
महफिल सूनी थी आपकी कविताओं के बिना, आप वापस आ गयी हैं तो कविता मुस्कुरायेगी । हम तो आपको बुद्धू नहीं कहेंगें । स्वागत है पुन: आपका
ReplyDeleteSunita Ji
ReplyDeleteaapne bahut hi achhi kavita ki rachna karke aap ne har dosto ka man bahlaya hai aage bhu mujhe aasa hi nahi balki purn biswash hai apne nai nai kavita ki rachna ke dwara aap sare dosto ka manoranjan karte rahenge
Priyatam Kumar Mishra
ek naye beemar ne aapki kavita parhi, maja aa gaya...ha ha ha...
ReplyDeleteआने के लिए धन्यवाद । हम तो बस आ लौट के आ जा गाने ही वाले थे ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
बहुत खूब! कार्टून भी मजेदर है। हिंदी में बनाना सीखिये जल्दी से।
ReplyDeleteप्रिय सुनीता,
ReplyDeleteआपकी इस मधुर कविता के लिए मेरा पूरा आफिस आपको धन्यवाद कहता है। आप इसी प्रकार हम सभी को आपनी सुंदर रचनाऐ भेजती रहें।
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(विनीत कुमार गुप्ता)
यही हाला हमारा है, आपने इसे बहुत ही अच्छी तरह बय़ान करदिया कविता मे. इस ब्लोगरिये का आपको सत सत नमन
ReplyDeleteह्म्म्म !!! हम तो सोच रहे थे मैडम लम्बी छुट्टी पर गई है , मगर जब कल अचानक ब्लॉग की कसक उठी और इधर उधर तालाश की तो पाया आप वापस आ गई है और अपने चिर-परिचित अंदाज़ मे! स्वागत है!!!
ReplyDeleteकोरा हास्य ही नहीं, यथार्थ भी बयाँ कर गईं हैं आप, लगता सच्चे दिल से लिखा है। यह और बात है कि बहुत कम लोग अपने बारे में ऐसा सच कह पाते हैं।
ReplyDelete:):) कविता करने वालों की वाट लगा दी :)
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 3 - 11 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज ...
आपके सफल ब्लॉग के लिए साधुवाद!
ReplyDeleteहिंदी भाषा-विद एवं साहित्य-साधकों का ब्लॉग में स्वागत है.....
कृपया अपनी राय दर्ज कीजिए.....
टिपण्णी/सदस्यता के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें....
http://pgnaman.blogspot.com
हरियाणवी बोली के साहित्य-साधक अपनी टिपण्णी/सदस्यता के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें....
http://haryanaaurharyanavi.blogspot.com
यह सब नशे से कम नहीं है..और हम ब्लोग्गेर्स को मत रोको..हम सभी इस नशे की गिरफ्त में हैं
ReplyDeleteन जायेंगे अब छोड़ तुम्हे ए कविता,
ReplyDeleteकहते है गुड़ खाके...
रहे सलामत अपनी ब्लागिन
करें टिप्पणी बरसाके...
जाड़ों में भी बरसात करवा रहीं हैं
मूसलाधार बरसात से सर्दी बढ़वा रहीं हैं
बिसिनस का नया अंदाज देखिये
खूब चाय की बिक्री बढे
"हास्य कविता" का यह'साज'देखिये.
सुनीता जी मेरी भी अब सुन लीजिये
मेरे ब्लॉग की तो कुछ सुध लीजिये.
आप नही आयीं तो टंकी पर चढ जाऊँगा.
न लिखने का 'इल्जाम'आप पर ही मढ जाऊँगा.
जल्दी से फैंसला कीजिये.
हास्य के साथ भक्ति का भी लुत्फ़ लीजिये.
साभार सहित
आपका तुच्छ भाई.
वाह :))))
ReplyDeleteहम तेरे प्यार मे क्या क्या न बने कविता………गुड खा के……………:):):)
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