चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Thursday, June 30, 2011

अठन्नी तो बचाओ (चवन्नी प्रकरण)



सुबह-सुबह की खबर पर
पड़ी जब नज़र
प्यारे ने पुकारा
प्रभु! तेरा ही सहारा...
आज संसार का तुमने
क्या हाल कर दिया
मंहगाई को जवान
और
प्याज को बदनाम कर दिया

कितने सुखी थे हम
इकन्नी दुअन्नी के जमाने में
एक उम्र बीत गई थी
चवन्नी कमाने में
आज उसी चवन्नी को
कर दिया आऊट
क्या आयकर विभाग को था
मेरी चवन्नी पर डाऊट?

हे सर्वशक्तिमान
कोई उपाय बतलायें
सरकारी चंगुल से मेरी
चवन्नी को छुड़वायें...

सुनकर प्यारे की चिल्ल पौं
पत्नी दौड़ी आई
तुमको भी न प्यारे जी
कभी अकल न आई
बेवजह इतना चिल्लाते हो
सुबह सुबह बेचारे
पडौसियों को जगाते हो...

सुनकर पत्नी की फ़टकार
प्यारे लाल बोले
सुनो मेरी सरकार
क्या जमाना आ गया
मेरी चवन्नी को ही
खा गया...

पत्नी बोली प्यारे जी
चवन्नी तो जाने कब से
खो गई थी बाज़ारों में
लुटते-लुटते लुट गई थी
भिखमंगों की कतारों में
और अब तो
भिखमंगो ने भी पल्लू छुड़ा लिया
जाने कबसे
सम्पूर्ण चवन्नी को ही गटका लिया

चवन्नी का तो बस
रह गया था नाम
अस्तित्व तो कबका
सिमट गया श्रीमान...

प्यारे हुए परेशान बोले भाग्यवान
चवन्नी भर की चवन्नी ने
कितनी दौड़ लगवाई थी
तब जाके एक चवन्नी
अपनी जेब में आई थी।
इस छोटी सी चवन्नी ने
कितनों को बना दिया
चवन्नी छाप
कैसे भूल गई हैं
 इसकी गरिमा को आप?

रोते हुए प्यारे को
पत्नी ने समझाया
चवन्नी खोने का गम
है उसे भी बतलाया

जो होना था हुआ प्यारे मोहन
खुद को अब समझाओ
हो सके तो अपनी
अठन्नी को बचाओ...


सुनीता शानू


18 comments:

  1. अति सुंदर प्रस्तुति, क्या शब्द विन्यास है, क्या शैली है, आनंद आ गया

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  2. चवन्नी तो बंद हो गयी अब जिनकी चवन्नी चला करती थी उनका क्या होगा?

    इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकारें.
    नीरज

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  3. .चवन्नी अमर है, वह यादों में, मुहावरों में सदैव याद रहेगी !

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  4. बहुत बढ़िया .. अठन्नी का अस्तित्व भी बाज़ार से जा चुका है ...क्या बचाएं ?

    अच्छी रचना

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  5. अति सुंदर प्रस्तुति,

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  6. मैं चली...मैं चली........


    -चवन्नी की तरह से...

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  7. मंहगाई की भेंट चढ़ गया चवन्नी,देखिये अभी कितने और सिक्के मरते हैं

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  8. बहुत सुन्दर लिखा है आपने मज़ा आ गया... बधाई

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  9. बहुत सुन्दर लिखा है आपने मज़ा आ गया... बधाई

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  10. पूजा खातिर चाहिए सवा रुपैया फ़क्त |
    हुई चवन्नी बंद तो खफा हो गए भक्त ||

    कम से कम अब पांच ठौ, रूपया पावैं पण्डे |
    पड़ा चवन्नी छाप का, नया नाम बरबंडे ||

    बहुतै खुश होते भये, सभी नए भगवान् |
    चार गुना तुरतै हुआ, आम जनों का दान ||

    मठ-मजार के नगर में, भर-भर बोरा-खोर |
    भ'टक साल में भेजते, सिक्के सभी बटोर || |

    भ'टक-साल सिक्का गलत, मिटता वो इतिहास |
    जो काका के स्नेह सा, रहा कलेजे पास ||

    अन्ना के विस्तार को, रोकी ये सरकार |
    चार-अन्ने को लुप्त कर, जड़ी भितरिहा मार ||

    बड़े नोट सब बंद हों, कालेधन के मूल |
    मठाधीश होते खफा, तुरत गयो दम-फूल ||

    महाप्रभु के कोष में, बस हजार के नोट |
    सोना चांदी-सिल्लियाँ, रखें नोट कस छोट ||

    बिधि-बिधाता जान लो, होइहै कष्ट अपार |
    ट्रक- ट्रैक्टर से ही बचे, गर झूली सरकार ||

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  11. बहुत-बहुत धन्यवाद आप सभी का। बस यूँ ही कुछ लिख दिया था। न कुछ शब्द हैं न शैली है हाँ हँसने के लिये मसाला अवश्य तैयार किया था।...:)

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  12. VERY NICE ...RAVIKAR JI KI KAVITA PADH KAR MAZA AA GAYA

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  13. जब स्विस बैंक में अरबों खरबों के वारे न्यारे होते हों तो चवन्नी की करुण पुकार को कौन सुनने वाला है सुनीता जी.

    आपका मसाला तो बस कमाल का है जी.

    ना आप मेरे ब्लॉग पर अभी तक आयीं हैं
    न ही मालपुए लाई हैं.
    मैं अपनी फरियाद अब किस से कहूँ,शानू जी.

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  14. बहुत मज़ेदार अंदाज़ मे अपनी बात कही है।

    सादर

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  15. achhaa hasy,
    par athannee ke chakkar mein rupayyaa mat ganvaa dena

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  16. वाह ....बहुत खूब कहा है आपने ।

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  17. aakhirkaar aapka blog mil hi gaya aaj mujhe..ye rachanaa bahut hi zyada pasand aayi... :)

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य