चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Saturday, September 11, 2010

एक विचार (कविता)





कभी-कभी आत्मा के गर्भ में,
रह जाते हैं कुछ अंश-
दुखदायी अतीत के,
जो उम्र के साथ-साथ,
फलते-फूलते-
लिपटे रहते हैं-
अमर बेल की मानिंद...


अमर बेल-
जो 
पीडित आत्मा को सूखा कर-
बनादेती है ठूँठ
ठूँठ 
जिसपर-
नही होता असर-
खुशियों की बरसात का
जिस पर नही पनपती
उम्मीद कोई...


ये दुखदायी अतीत के अंश
होते है जंमांध 
और कुँठित मन
सुन नही पाता
बदलते वक्त की आहट
कह भी नही पाता
मन की कड़वाहट


क्योंकि
इनकी काली परछाई
नही छोड़ती कभी
आत्मा को अकेले
सालती रहती हैं-
टीस बन कर
उम्र भर--


सुनीता शानू





18 comments:

  1. बहुत ही भावपूर्ण रचना ....
    गणेश चतुर्थी पर्व पर हार्दिक शुभकामनाये....

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  2. ये दुखदायी अतीत के अंश
    जंमांध होते है
    और कुँठित मन
    सुन नही पाता
    बदलते वक्त की आहट
    सुंदर भावाव्यक्ति बधाई

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  3. जो पीडित आत्मा को सूखा कर-
    बनादेती है ठूँठ

    आत्मायें हैं कहाँ.. अभी सब ठूँठ ही हैं..
    कविता मन के उदगार से व्यक्त करती सी है..

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  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।

    देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें

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  5. बदलते वक्त की आहट
    कह भी नही पाता
    मन की कड़वाहट
    क्योंकि
    इनकी काली परछाई
    नही छोड़ती कभी
    आत्मा को अकेले
    Bahut khoob Sunitaa ji.

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  6. बहुत सुन्दर रचना. आभार.

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  7. ek utkrisht adhyatmic rachana
    saadar
    kavi kulwant

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  8. ये दुखदायी अतीत के अंश
    जंमांध होते है
    और कुँठित मन
    सुन नही पाता
    बदलते वक्त की आहट
    कह भी नही पाता
    मन की कड़वाहट
    बहुत ही गहरी अभिव्यक्ती आत्मा को झिंझोड कर रख देने वाली ।
    गणपति बाप्पा मोरया ।

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  9. bahut dard hai is kavita me ..bahut acha laga mam...thanks..

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  10. behtareen........:)
    aapke orkut profile ke through yahan pahuch gaya, to laga follow karna parega........:)

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  11. behtareen........:)
    aapke orkut profile ke through yahan pahuch gaya, to laga follow karna parega........:)

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  12. बहुत भावमय अभिव्यक्ति है। दिल को छू गयी। हम खुद भी तो उन अंशों से दूर नही होना चाहते।

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  13. सुन्दर मनोभावों का चित्रण किया है आपने इस रचना के माध्यम से.

    परन्तु अतीत से बंधे व्यक्ति का कोई भविष्य नहीं होता इसलिये अतीत चाहे कितना भी दुखद क्यों न हो उसे भुला कर आगे बढना ही उचित निर्णय है.

    लिखते रहिये

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  14. इत्तिफाक से आपके ब्लॉग तक आना हुआ बहुत सी कवितायेँ पढ़ी ये रचना कुछ ज्यादा ही मन को छू गयी ..बहुत गहरा लिखा है आपने इस खूबसूरत अभ्व्यक्ति पर बंधाई स्वीकारें

    क्योंकि
    इनकी काली परछाई
    नही छोड़ती कभी
    आत्मा को अकेले
    सालती रहती हैं-
    टीस बन कर
    उम्र भर--

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य