प्रेम को तलाशते नए अन्दाज़ ... पर शायद प्रेम दोनो में है थोड़ा थोड़ा ... वजह में और स्वार्थ में ..
वाह बहुत ही बढ़ियाअंतिम पंक्ति तो वाह
ओह ,वजहें मार देती हैं , उफ़ उफ्फ्फ | बहुत ही कमाल
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 11 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत सही।
सच है ज़रूरतें स्वार्थी बना देती है। बहुत सुन्दर भाव।
जरूरते स्वार्थी बना देती है.......अच्छी रचना
bhut hi badiya post likhi hai aapne. Ankit Badigar Ki Traf se Dhanyvad.
AWESOME POST THANKS FOR SHARE I LOVE THIS POST
आदरणीय अति सुन्दर भाव!http:feelmywords1.blogspot.com
स्वागत है आपका...
प्रेम को तलाशते नए अन्दाज़ ...
ReplyDeleteपर शायद प्रेम दोनो में है थोड़ा थोड़ा ... वजह में और स्वार्थ में ..
वाह बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteअंतिम पंक्ति तो वाह
ओह ,वजहें मार देती हैं , उफ़ उफ्फ्फ | बहुत ही कमाल
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 11 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सही।
ReplyDeleteसच है ज़रूरतें स्वार्थी बना देती है। बहुत सुन्दर भाव।
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ReplyDeleteआदरणीय अति सुन्दर भाव!
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