आप सभी जिन्होने इस कवि-गौष्ठी को सफ़ल बनाने में मेरा साथ दिया है मै हृदय से नमन करती हूँ,और बहुत से लोग जो नेट पर हमे देख सुन रहें थे उनका भी हार्दिक अभिनंदन करती हूँ,किसी भी कार्य की सफ़लता में कुछ बातें जरूरी होती है....विश्वास,लगन,और गुरूजनो का आशीर्वाद....यही इस कार्यक्रम की सफ़लता का राज है...मुझे आप सब पर और खुद पर पूरा विश्वास था और गुरूजनो का आशीर्वाद हमारे साथ था...तो कैसे न होती कामयाबी....मुझे बहुत से लोगो की व्यक्तिगत टिप्पणीयाँ मिली है मगर मै जानती हूँ उन पर आप सभी का हक है ...अतः यहाँ प्रकाशित कर रही हूँ....कविता के सागर से निकली संवेदनाओं की खुश्बू मुझ तक पहुंची। बधाई। छोटी-छोटी कोशिशें कितना बड़ा काम कर जाती हैं, इतिहास हमें इनके उदाहरण देता है। यह आयोजन भी आने वाले दिनों में उसी इतिहास का हिस्सा होगा। कविता में बदलाव के सारे बड़े संदभॆ ऐसे ही छोटी-छोटी पगडंडियों से गुजरते हैं। समय सारी कोशिशो को अपने रजिस्टर में लिखता रहता है। ऐसे दौर में जब महानगरों में अतिथि के सत्कार से पहले उससे होने वाले ळाभ गिनने की रवायत चल रही हो, इस तरह के आयोजन को धारा के विपरीत एक जरूरी कोशिश के तौर पर दजॆ किया जाना चाहिए। हिंदी भाषा और हिंदी भाषी समाज दोनों पर अपने समय से पीछे चलने का आरोप है। तकनीकी से परहेज और कूप-मंडूक होने के तकॆ अक्सर दिए जाते हैं। लेकिन कमाल है साहब, हिंदी और तकनीकी के संगम ने होशंगाबाद, अमेरिका और दिल्ली सबको एक जगह जुटा दिया। मैं आप सब के लिए सिफॆ एक लफ्ज लिखना चाहूंगा-जिंदाबाद।।।।-प्रताप सोमवंशीस्थानीय संपादक, अमर उजाला हिंदी दैनिक, ८९ इंडस्टियल एस्टेट कानपुरएक श्रोता एसे भी थे जो फोन पर ही कवि-गौष्ठी का आनंद ले रहे थे...सुनीता जी नमस्कार,
मै कई दिनों से आपके घर होने वाले आयोजन की प्रतिक्षा कर रहा था,आज मैने इन्टरनेट के माध्यम से आपके आयोजन में जुड़ने की काफ़ी कोशिश की किंतु नाकामयाब रहा.तब मुझे एक उपाय सूझा,मैने सीधे आपके दिये हुए टेलिफोन पर नम्बर लगाया,जिन सज्जन ने फोन उठाया उनसे मैने कवि सम्मेलन सुनने की ख्वाहिश अर्ज की जिसे उन्होने स्वीकार कर लिया...और इस तरह मुझे फोन पर कवि सम्मेलन सुनने का मौका मिला.
मै ज्योति अरोड़ा जी के पहले काव्यपाठ कर रहे कवि की कविता अधूरी सुन पाया,अतः टिप्पणी नही कर सकूँगा.ज्योति जी की रचनायें सुनी,उनमें नयोचित कोमलता के साथ एक दबा हुआ सुप्त ज्वालामुखी अपनी पूर्ण ऊष्मा और ऊर्जा को संजोये परिलक्षित होता है
ज्योति जी के बाद संजीव जी का गीत सुबह के शीतल पवन झकोरों से उठती ताजगी का एहसास दे गया,वरिष्ठ गीतकार कुअर बेचैन तो जीवन्त किवंती (लिविंग लीजेण्ड) है-समकालीन समग्र भारतीय साहित्य की एसी निधी -जिसने शब्दो को अपने इशारों पर नचाया है और उन्हे जनसामान्य के समेकित सरोकारों को प्रतिध्वनित करने के लिये विवश किया है,समीर जी की कविता उनकी व्यापक सोच का सार्थक प्रतिबिम्बन करने में और साधारण सी अभिव्यक्तियों में छुपी कविता को निरायास अनावृत करने में कामयाब रही हैं
राकेश जी की रचनायें उनके विराट साहित्यिक व्यक्तित्व के अनुरूप रहीं.
आयोजन की सूत्रधार सुनीता(शानू) की कविता के नये तेवर जहाँ एक ओर नव-समाज की वैचारिक बारिकियों,प्ररुतियों और मनोदशा के नये सिरे से विश्लेष्णात्मक पड़ताल करते हैं वहीं दूसरी तरफ़ अपने बौध्विक दायित्वों से भी नावाकिफ़ नही हैं,वास्तव में व्यंग्य का उध्देश्य हँसाने की अपेक्षा मर्म पर चोट करने का ज्यादा है और इस लक्ष्य की प्राप्ति में सुनीता जी की रचना प्रेम का प्रमाणपत्र एक सफ़ल रचना हैं.
शेष रचनाकारों को मै सुन नही पाया लेकिन उम्मीद है कि उनकी रचनाओं ने भी कवि सम्मेलन की ऊँचाईयां प्रदान की होगी, इस सफ़ल आयोजन हेतु आपको कोटिशः बधाइयां.
भवदीयः
आनन्द कृष्ण, जबलपुर.
आप सभी को जिस रिपोर्ट का बेसब्री से इंतजार है बह कुछ ही दिनो में आप विडियो सीडी के द्वारा देख और सुन सकेंगें....
सुनीता(शानू)