चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Sunday, January 27, 2008

कुछ पुरानी यादें...

कुछ पुरानी यादें...धूमिल न हो जाये...आईये ले चले कुछ हँसने -हँसाने...
आज हम भी कोशिश करते है ... तस्वीरे क्या बोलती है...

कौन कहता है कि मुझमे लचक नही...
मुसाफ़िर भाई ध्यान से कहीं कमर में झटका न आ जाये...:)




खलिश भाई यह आपके लिये ही है...


देखिये तस्वीर अच्छी आनी चाहिये...:)




गुरूदेव प्रणाम!







न न न गुरूदेव से पंगा हर्गिज नही...





नही वापिस न दें आपके लिये ही है...



राजीव भाई अब आपके साथ पंगा कौन लेगा...



जाने आपने क्या जादू किया है नीलिमा जी सब हँस रहे है...


अगर कमर में दर्द है तो पहले बताते न विनोद भाई...:)







माईक दूर रहने से आवाज सही नही आती...:)





घबरा मत अक्षय बेटा अच्छी तरह से पढ़ यहाँ किसी को कविता याद नही है सब देखकर पढेंगे...:)




कैसी बातें करते है आप भी कविता हाथ में है मगर देख नही रहा...:)





मेरे तो हाथ में बहुत तेज़ दर्द हो गया रात भर कविता लिखते-लिखते


हम किसी से कम नही है भैया देख लेना...






न न न ससुर जी से मजाक नही


रे निखिल क्या सारी डायरी आज ही पढोगे?


मै भी सुना ही दूँ क्या एक कविता...





समझ नही आ रहा क्या लिखा है...:)


क्षमा गुरूदेव

क्या सुनना पसंद करोगे?



यहाँ भी पंगा...:)




यह माईक मुझे बेहद पसंद है...


ध्यान से सुनिये...


एक और कविता की गुजारिश है...



हाथ जोड़ कर प्रार्थना है कृपया तालियाँ अवश्य बजायें


क्षमा करें संतोष जी


गुरूदेव आपके काव्य-पाठ में पटाखे क्यूँ छोड़े जा रहे थे?






देखा आपका भी जवाब नही कुँवर साहब...आपकी आवाज ने सबको बाँध दिया

Sunday, January 20, 2008

ओह! भूल गया

दोस्तो रोजमर्रा की जिन्दगी में कहीं आप भी कुछ भूले तो नही? अगर लगता है कुछ भूल रहे है तो हो सकता है याद आ ही जाये आपको भी... एक छोटी सी पेशकश है...


-घर से ऑफ़िस-
-ऑफ़िस से घर-
-आते जाते-
-हमेशा भूल जाता हूँ...
-मगर आज सब याद है-
-बेटा ये लो तुम्हारा चॉकलेट-
-ठीक है न-
-मुन्नी तुम्हारी गुड़ीया भी-
-और तुम्हारी यह लाल साड़ी-
-हाँ लाल ही लानी थी न...
-देखा...मुझे सब याद है-
-है न-
-बेटा.... बहुत दिनों से दर्द है-
-अब सहन नही होता-
-क्या आज डॉक्टर से अपाईंटमेंट ले लिया...?
-ओह्ह! .....बाबूजी... आज फ़िर भूल गया-
-मेरी याददास्त को जाने क्या हो गया है...

सुनीता शानू
-

Wednesday, January 9, 2008

माँ की व्यथा

दोस्तों मेरी यह कविता १३ तारीख को रेडियो द्वारा राष्ट्रीय प्रसारण दिल्ली केंद्र से प्रसारित होगी...रेडियो या अखबार जिसे शायद आज सब भूल गये हैं मगर हर खासोआम के दिल तक पँहुचता है आज भी रेडियो और अखबार...:) ... कृपया आज ही खरीद कर लाईये एक छोटा सा रेडियो और सुनिये आपके प्रिय कवि की दर्द भरी कविता...:)

देख कर लाल की खूबसूरत छवि,
मन ही मन बावरी मुस्काती रही,
डर न जाये कहीं मेरा लाडला...
मुँह आँचल से अपना छिपाती रही।


मगर एक दिन ये हवा जो चली,
ले उड़ी आँचल वो पकड़ती रही,
देख कर लाल तो डर ही गया...
मै माँ हूँ... तेरी वो बताती रही।


पोंछ कर आँसू आँखे छिपाती रही,
खुद को नजरों से खुद की गिराती रही,
आँसूओं लग न जाये बददुआ लाल को,
दोनो हाथों को दुआ में उठाती रही।


छोड़ कर गया वो राह तकती रही,
देर तक वो रोती सिसकती रही,
एक दिन तो आ जाना मेरे लाडले,
हर साँस में आस एक पलती रही।


याद में पुत्र की साँसे चलती रही,
आत्मा भी मिलन को तड़पती रही,
अन्तिम समय आ गया जानकर...
आँसुओ से चिट्ठी वो लिखती रही।


-
मेरे लाल जान ले मजबूरी मेरी-
उम्र भर जिस चेहरे से तूने नफ़रत करी,
एक रोज बचाने तूझे आग से...
जल गई थी ये सूरत मेरी।


खुद जलकर भी खुद को बचाती रही,
अपनी आँखों से दुनियाँ दिखाती रही,
मै खुश हूँ मै हर पल तेरे साथ थी,
तेरी आँखों मे मै सदा मुस्काती रही।


खत पढ़ा पढ़कर आँखें ही रोती रही,
आत्मा पुत्र की माँ को बिलखती रही,
जब तक माँ थी मै समझा नही...
इन आँखो से माँ दुनियां दिखाती रही।


माँ जैसी भी हो मेरे लाडलो,
जन्म जिसने दिया न नफ़रत करो,
सौ जन्मों में भी क्या चुका पाओगे,
कर्ज दूध का अदा क्या कर पाओगे,

बन कर लहू को रंगो में बहा...
कतरा-कतरा क्या उसको कर पाओगे-?


सुनीता चोटिया (शानू)

Thursday, January 3, 2008

तस्वीर तुम्हारी


-दिल के कोरे कागज पर-

-खींचकर कुछ आड़ी-तिरछी लकीरें-

-जब देखती हूँ...

-बन जाती है तस्वीर तुम्हारी-

-और लगता है कागज़ का वह टुकड़ा-

-कह रहा हो मुझसे-

-मै तो बसा हूँ दिल में तुम्हारे-

-क्यों कागज पर उतारा है?

-देखो बेरहम दुनियाँ जला न दे-

-देखो कहीं हवा उड़ा न दे-

-और घबरा कर मै समेट लेती हूँ-

-वो तस्वीर तुम्हारी....


-जब सुबह का सूरज-

-अपनी रौशनी फ़ैलाये-

-मेरी खिड़की से झाँकता है-

-मुझे नजर आते हो तुम-

-अपनी इन्द्र-धनुषी बाँहे फ़ैलाये-

-और मेरे चेहरे से छूती-
-तुम्हारी बाँहे-

-जगा देती है मुझे-

-तुम्हारे अहसास के साथ-

-सचमुच तुमसे मिलकर जिन्दगी-

-एक कविता बन गई है-

-और मै एक कलम-

-जो हर वक्त-

-तुम्हारे प्यार की स्याही से-

-बनाती है तस्वीर तुम्हारी...।
सुनीता(शानू)

अंतिम सत्य