चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Saturday, September 17, 2011

मन को मनाने के अंदाज निराले है


बस एक छोटी सी कोशिश...


मन को मनाने के अंदाज निराले है
हुए नही वो हम ही उसके हवाले हैं

उसने कसम दी तो न पी अभी तक
हाथ में पकड़े लो खाली प्याले है

दिल की बात जुबां पर लाये भी कैसे
ये भीड़ नही बस उसके घरवाले हैं

बात छोटी सी भी वो समझे नही
चुप रहेंगे भला जो कहने वाले हैं

इन्तजार की भी होती है हद दोस्तों
रूक न पायेंगे हम जो मतवाले हैं॥


सुनीता शानू

अंतिम सत्य