तुम जब भी उदास होते हो
मै उन वजहों को खोजने लगती हूँ जो बन जाती है
तुम्हारी उदासी की वजह
और उन ख़ूबसूरत पलों को
याद करती हूँ
जो मेरी उदासी के समय
तुमने पैदा किये थे
मुझे हँसाने व रिझाने के लिये
काश! कभी तो मिटेंगे एक साथ ये उदासी के काले बादल
जब हम दोनों को
नहीं करना होगा जतन
एक दूसरे को हँसाने का
हम मिलकर हंसेंगे एक साथ
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 04 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया।
Deleteवाह !बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर
बहुत धन्यवाद अनीता जी
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें
हाँ संजय अब कोशिश रहेगी नियमित लिखने की। बहुत शुक्रिया।
Deleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया जी।
Deleteवाह!!खूबसूरत सृजन!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteDil gahrai se prem atirek wali ahivyakti
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ReplyDeleteबेस्ट है
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