चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Wednesday, January 8, 2014

नही पड़ता फर्क





नही पड़ता फर्क 
तेरे कुछ न कहने से
तेरे दूर होने या 
पास होकर भी न होने से
किन्तु 
होती है बेचैनी
भर जाती हूँ एक अज़ीब सी चुप्पी से
या चहकती हूँ बेवजह मै
कैसी कशमकश है 
मुझे खुद से जुदा किये है
फिर भी नही कह पाती
ये खुदकुशी है...

शानू

3 comments:

  1. भावो का सुन्दर समायोजन......

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  2. बहुत सुन्दर भावमय रचना ....!

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  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य