दिन बहुत हुये...
दिन नहीं साल हुये हैं
हाँ सालों की ही बातें है
जाने कितनी मुलाक़ातें है
गिन सकते हैं हम उँगलियों पर लेकिन
दिन...महिने...साल...
गिन लेने के बाद भी
गिनकर बता सकोगे!
बाल से भी बारीक उन लम्हों को
जो बिताये है तुम्हारे साथ
और साथ बिताने के इंतज़ार में
ढुलकते आँसुओं का सूख जाना
लेकिन आज
उम्र के साथ और भी गहरे में
बैठ गया है तुम्हारा प्यार
बेचैनी बढ़ जाने से
आँखें ज्यादा नमीदार हो गई है
हाँ इंतज़ार आज भी उतना ही है
मेरे तुम से मिलने का
क्योकि तुमने ही कहा था एक दिन
मुझसे पूरे होते हो तुम
और तुमसे मैं
तभी से मै
मेरे भीतर बसे "तुम" से मिलकर
हर दिन पूर्ण हो जाती हूँ...।
शानू
वाकई हर शब्द खूबसूरत और करीने से जमे हुए
ReplyDeleteNice lines ��
ReplyDeleteमेरे भीतर बसे "तुम" से मिलकर
ReplyDeleteहर दिन पूर्ण हो जाती हूँ...।
...अद्भुत...बहुत ख़ूबसूरत अहसास और उनकी प्रभावी अभिव्यक्ति...
बहुत ही प्यारी कविता।
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट....
ReplyDeleteआप को दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@आओ देखें मुहब्बत का सपना(एक प्यार भरा नगमा)
बहुत सुंदर
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वाह ! बेहद नाज़ुक अहसासों की बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ! बहुत् खूब !
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