कभी-कभी आत्मा के गर्भ में,
रह जाते हैं कुछ अंश-
दुखदायी अतीत के,
जो उम्र के साथ-साथ,
फलते-फूलते-
लिपटे रहते हैं-
अमर बेल की मानिंद...
अमर बेल-
जो
पीडित आत्मा को सूखा कर-
बनादेती है ठूँठ
ठूँठ
जिसपर-
नही होता असर-
खुशियों की बरसात का
जिस पर नही पनपती
उम्मीद कोई...
ये दुखदायी अतीत के अंश
होते है जंमांध
और कुँठित मन
सुन नही पाता
बदलते वक्त की आहट
कह भी नही पाता
मन की कड़वाहट
क्योंकि
इनकी काली परछाई
नही छोड़ती कभी
आत्मा को अकेले
सालती रहती हैं-
टीस बन कर
उम्र भर--
सुनीता शानू
बहुत ही भावपूर्ण रचना ....
ReplyDeleteगणेश चतुर्थी पर्व पर हार्दिक शुभकामनाये....
ये दुखदायी अतीत के अंश
ReplyDeleteजंमांध होते है
और कुँठित मन
सुन नही पाता
बदलते वक्त की आहट
सुंदर भावाव्यक्ति बधाई
sach
ReplyDeleteजो पीडित आत्मा को सूखा कर-
ReplyDeleteबनादेती है ठूँठ
आत्मायें हैं कहाँ.. अभी सब ठूँठ ही हैं..
कविता मन के उदगार से व्यक्त करती सी है..
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteहिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।
देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें
बदलते वक्त की आहट
ReplyDeleteकह भी नही पाता
मन की कड़वाहट
क्योंकि
इनकी काली परछाई
नही छोड़ती कभी
आत्मा को अकेले
Bahut khoob Sunitaa ji.
बहुत सुन्दर रचना. आभार.
ReplyDeleteek utkrisht adhyatmic rachana
ReplyDeletesaadar
kavi kulwant
ये दुखदायी अतीत के अंश
ReplyDeleteजंमांध होते है
और कुँठित मन
सुन नही पाता
बदलते वक्त की आहट
कह भी नही पाता
मन की कड़वाहट
बहुत ही गहरी अभिव्यक्ती आत्मा को झिंझोड कर रख देने वाली ।
गणपति बाप्पा मोरया ।
bahut dard hai is kavita me ..bahut acha laga mam...thanks..
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteमैं दुनिया की सब भाषाओं की इज़्ज़त करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिन्दी की इज़्ज़त न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे
भारतेंदु और द्विवेदी ने हिन्दी की जड़ें पताल तक पहुँचा दी हैं। उन्हें उखाड़ने का दुस्साहस निश्चय ही भूकंप समान होगा। - शिवपूजन सहाय
हिंदी और अर्थव्यवस्था-2, राजभाषा हिन्दी पर अरुण राय की प्रस्तुति, पधारें
behtareen........:)
ReplyDeleteaapke orkut profile ke through yahan pahuch gaya, to laga follow karna parega........:)
behtareen........:)
ReplyDeleteaapke orkut profile ke through yahan pahuch gaya, to laga follow karna parega........:)
बहुत भावमय अभिव्यक्ति है। दिल को छू गयी। हम खुद भी तो उन अंशों से दूर नही होना चाहते।
ReplyDeleteसुन्दर मनोभावों का चित्रण किया है आपने इस रचना के माध्यम से.
ReplyDeleteपरन्तु अतीत से बंधे व्यक्ति का कोई भविष्य नहीं होता इसलिये अतीत चाहे कितना भी दुखद क्यों न हो उसे भुला कर आगे बढना ही उचित निर्णय है.
लिखते रहिये
bahut sundar bhavpuran rachna....
ReplyDeleteसुन्दर कविता, बधाई.
ReplyDeleteइत्तिफाक से आपके ब्लॉग तक आना हुआ बहुत सी कवितायेँ पढ़ी ये रचना कुछ ज्यादा ही मन को छू गयी ..बहुत गहरा लिखा है आपने इस खूबसूरत अभ्व्यक्ति पर बंधाई स्वीकारें
ReplyDeleteक्योंकि
इनकी काली परछाई
नही छोड़ती कभी
आत्मा को अकेले
सालती रहती हैं-
टीस बन कर
उम्र भर--